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खोरठा लेखन की लिपि —
खोरठा लिखने के लिए देवनागरी लिपि का व्यवहार होता है ।किन्तु देवनागरी लिपि के सभी अक्षरों का खोरठा में प्रयोग नहीं होता है ।कुछ अक्षरों को छोड़ दिया गया है ।
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खोरठा की वर्णमाला
(क) स्वर वर्ण –अ,आ,इ,ई,उ,ऊ ।खोरठा में इन्हीं आठ (8) स्वरों का प्रयोग होता है ‘ ऋ ‘ (जो कि वस्तुतः स्वर वर्ण है नही ) ‘ ऐ औ ‘का खोरठा मे उच्चारण नहीं है।इसलिए इन्हें छोड़ दिया गया है ।
(ख) खोरठा में ‘ऐ ‘के स्थान पर ‘ अइ ‘ लिखा जाता है जैसे –पैसा को पइसा। खैर को ‘ खइर ‘और मैदा को ‘ मइदा ‘ ।
(ग) ‘ ऋ ‘ के स्थान पर खोरठा में ‘ रि ‘ या ‘ री ‘ का व्यवहार होता है । ‘ ऋण ‘ का ‘ रीन ‘ ,ऋतु का ‘ रितु ‘, ऋषि का का ‘ रिसी ‘ आदि ।
(घ) ‘ औ ‘ के के लिए उसके मूल रूप — ‘ अउ ‘ का व्यवहार होता है ।जैसे –‘ कौआ ‘ का ‘ कउआ ‘, औजार ‘ का अउजार , ‘दौड़ ‘ का दउड़ ,जौ का जउ आदि ।
(ङ) खोरठा में अवग्रह (s )चिन्ह का प्रयोग गलत है।इसके बदले मूल क्रिया और सहायक क्रिया के बीच में हाइफन (-) का प्रयोग कर या मूल क्रिया मे ‘ओ ‘ कार डालकर सही रूप बनाया जाता है।
जैसे :– गलत —– सही
करS हलइ — कर –हलइ /करो हलइ
चलS हलइ — चल हलइ /चलो हलइ
इसी तरह अन्य रूप बनते हैं ।
(ङ) ‘ इ ‘और ‘ उ ‘ का प्रयोग तीन प्रकार ग का प्रयोग होता है।
(1) शब्द के आरम्भ मे जैसे — इड़क ,इलचि ,इँचर ,इँटक , इजोर , उटक ,उसट ,उफर ,उडर ,आदि – आदि ।
शब्द के मध्य में आगम जैसे :-कर -कइर ,चल-चइल ,रात-राइत ,जात-जाइत ,सुइत ,साध(2)शब्द के मध्य में ‘ इ ‘ या ‘ उ ‘ का आगम मध्य स्वरागम की प्रवृति बहुत सघन है ।इस तरह यह खोरठा भाषा की विशेषता भी है ।
( 3 )शब्द के अंत में — शब्द के अंत में ‘ इ ‘ तथा ‘ उ ‘ का प्रयोग क्रमशः तृतीय एवं द्वीतिय पुरूष एकवचन के सार्वजनिक प्रत्यय के रूप में क्रियारूपों में लगता है।जैसे उ ओकरा देखलइ ।ऊ तोरा देखलउ । ऊ ओकरा कहलइ । ऊ ओकरा कहलउ ।
‘ ई ‘ और ‘ उ ‘ का प्रयोग स्वतंत्र रूप से क्रमश निकटवर्ती एवं दूरवर्ती संकेतवाचक सर्वनाम के रूप में होता है ।
जैसे :- ई एकर हकइ ।ऊ ओकर हकइ ।
(च ) अनुस्वार तथा चँद्रबिंदु का व्यवहार हिन्दी जैसा ही होता है ।जैसे –कंठ ,मंतर , आँइख ,आँइख ,अइँगना ,छाहँइर , माइँ ,कोराइँ आदि ।
(छ) ( चन्द्र या अर्द्धचंद्र ) का व्यवहार सामान्यतः नहीं होता है ।
1.व्यंजन वर्ग
खोरठा मे निम्नलिखित व्यंजन ध्वनियों का व्यवहार होता है —
क ,ख ,ग ,घ ,
च ,छ ,ज ,झ ,ञ ,
ट , ठ ,ड ,ढ , ड ढ
त, थ , द , ध , न ,
प ,फ , ब , भ , म ,
य , र ,ल ,व , स , ह , ।
यानी ड ,ण ,श ,ष , त्र , और ज्ञ , का व्यवहार
खोरठा की विशिष्ट ध्वनियों —
म्ह , ल्ह , न्ह , रह , ये क्रमशः , म , ल , न , ह , के महाप्राणीकृत रूप है ।
(क) ‘ ञ ‘का प्रयोग खोरठा में किया जाता है किन्तु ‘ ई ‘ की तरह ।जैसे –माञ् , तोञ् ‘ कोराञ् ‘ आदि ।
(ख) ‘ ण ‘ का उच्चारण खोरठा में नहीं होने के कारण इसका प्रयोग नहीं होता है इसके स्थान पर ‘ न ‘का व्यवहार होता है ,जैसे — ‘ कारन ‘ , ‘ रीन ‘ , ‘ कन ‘ , ‘ मनि ‘ ,आदि ।
(ग) ‘ य ‘ का व्यवहार शब्दारंभ में नहीं होता है । हिन्दी फारसी -उर्दू या संस्कृत से आए शब्दों में आरम्भ में ‘ य ‘ ,’ ज ‘ ,या इअ अथवा ‘ ए ‘ बन जाता है ।जैसे —
यज्ञ — जइग , योगी — जोगी , यंत्र — जंतर ,
याद — इआइद , यार –इआर , यकिन –एकीन ,
(घ) ‘ य ‘ की तरह ही ‘ व ‘ का शब्द के शुरू में व्यवहार नहीं होता । ‘ व ‘ के स्थान पर ‘ ब ‘ का प्रयोग होता है । संस्कृत आदि शब्दों ‘ व ‘ , ‘ ओ ‘ बन जाता है ।
जैसे — वन — बन विषय — बिसय
विनोद — बिनोद व्यापर — बेपार
वकील — ओकिल वजन — ओजन
वजह –ओजह वसूल — ओसूल
(ङ) ‘ श ‘ और ‘ ष ‘ के स्थान पर सामान्य ‘ स ‘ का व्यवहार होता है । ‘ ष ‘ कहीं –कहीं ‘ ख ‘ में बदल जाता है ।
‘ श ‘ का ‘ स ‘ जैसे — शांति –सांति शोभा –सोभा
शुभ –सुभ
‘ ष ‘ का ‘ ख ‘ विष –बिख षटरस –खटरस
(च) ‘ क्ष ‘ का ‘ ख ‘ क्छ, च्छ ,या ‘ छ ‘ में बदलाव आ जाता है ।
जैसे — क्षति –खति क्षमता — खेमता
परीक्षा — परीक्छा /परीच्छा क्षेत्र — छेतर /खेत
क्षत्रिय — छतरी
(छ) ‘ त्र ‘ अपने पूर्ण रूप में यानी ‘ तर ‘ का व्यवहार होता है ।
जैसे — क्षेत्र –छेतर मंत्र —मंतर
यंत्र — जंतर
(ज) ‘ ज्ञ ‘ के स्थान पर ग्य ,या ‘ गेय ‘ ‘ ग ‘ का व्यवहार होता है । जैसे —
ज्ञान –गियान /गेयान
विज्ञान –विगिआन
यज्ञ —जइग
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Khortha book दु डागर जिरहुल फुल
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