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डिजिटल युग की चुनौतियां |Challenge of Digital Era|Digital Challenge in india

प्रौद्योगिकी के विकास और नए आविष्कार दुनिया और हमारे जीवन को बदल डालेंगे। दरअसल, जब भी कोई नई तकनीक आती है तो अपने साथ समाज के रहन-सहन और उद्योग-धंधों के काम-काज के तरीके में भी बदलाव लाती है। तकनीक ही मानव विकास का आधार तैयार करती रहती है। इतिहास तकनीकी विकास के ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां इसने मानव विकास के इतिहास में बदलाव की बड़ी भूमिका निभाई है। इसलिए यह दशक हमें पीछे देखने के साथ-साथ भविष्य में भी झांकने का मौका देता है।

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Data scientists. Male programmer using laptop analyzing and developing in various information.

पिछले लगभग तीन सौ सालों में दुनिया में जो बदलाव आया, उसके पीछे प्रौद्योगिकी का बहुत बड़ा हाथ रहा है। 1750 में हुई औद्योगिक क्रांति ने तो दुनिया की तस्वीर ही बदल डाली। यह वही समय था जब भाप और डीजल इंजन के आविष्कार के बाद औद्योगिक क्रांति हुई थी। 1750 में दुनिया का जीडीपी तमाम हिस्सों में खासकर एशिया, यूरोप के ज्यादातर हिस्सों में बराबर सा था। प्रति व्यक्ति आमदनी और जीवन की गुणवत्ता के लिहाज से उतनी ज्यादा गैर बराबरी नहीं थी, जितनी अब है। फिर औद्योगिक क्रांति ने इसे पूरी तरह बदल डाला। और गुजरी सदी में तो हमारे पास नलों में पानी, गर्म पानी, कारें, एअर कंडीशनर जैसी विलासिता की हर वह चीज थी, जिसके आज हम आदी बन चुके हैं।

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लेकिन पिछले सत्तर साल के दौरान दुनिया में नए-नए तकनीकी आविष्कारों और खोजों ने इंसान के जीवन को काफी बदल डाला है। फिर चौथी औद्योगिक क्रांति जिसे डिजिटल क्रांति के नाम से जाना जाता है, ने तो आर्थिक वृद्धि का नया इतिहास लिख डाला। पूरी दुनिया आज इसी डिजिटल क्रांति का लाभ ले रही है। 1990 के दशक के बीच से लेकर 2000 के दशक के बीच तक ऐसा हुआ था और इसमें बहुत कुछ श्रेय पर्सनल कंप्यूटर को दिया जाता है। तबसे हम इसका उपयोग कर रहे हैं। पर हमें आर्थिक समृद्धि का वह स्तर हासिल नहीं हुआ जो डिजिटल तकनीक की वजह से ज्यादा बराबरी से बंटा हुआ हो सकता था। इसलिए हमें और ज्यादा व्यापक तकनीक की जरूरत है। इसकी एक झलक माइक्रोसाफ्ट के सीईओ सत्य नडेला ने अपनी किताब ह्य हिट रिफ्रेशह्ण में पेश की है। इसमें यह बताया गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम मेधा और क्वांटम कंप्यूटिंग से किस तरह आपकी जिंदगी बदलने वाली है।

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Man using mobile smart phone with global network connection, Technology, innovative and communication concept.

अब सवाल है कि प्रौद्योगिकी को ऐसा कैसे बनाया जा सकता है कि और ज्यादा लोगों को यह ज्यादा कुदरती ढंग से सुलभ हो। यह तब संभव होगा जब कंप्यूटर आप की आंखों के सामने होगा और आप असल दुनिया और आभासी दुनिया में फर्क तक नहीं कर पाएंगे। यह मिश्रित यथार्थ दुनिया होगी। यह बुनियादी स्थानांतरण और बदलाव का एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू मेधा या कृत्रिम मेधा है। यह इंसान की जिंदगी और परिवार के साथ-साथ समाज के लिए मायने रखती है। इसलिए अर्थव्यवस्थाओं पर इसका व्यापक असर पड़ने जा रहा है। इसका आखिरी पहलू यह है कि हम कंप्यूटिंग इंटरफेस और तजुर्बों की इस भरमार को और ज्यादा पैदा करना चाहते हैं, हर उस चीज को जो कृत्रिम मेधा की ताकत से चलती है।

आने वाला वक्त क्वांटम कंप्यूटिंग का है। दुनिया के हजारों वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं। इसमें भौतिकी, गणित और कंप्यूटर विज्ञान की बुनियादी कामयाबियों को जोड़ कर कंप्यूटिंग के एक नए रूप को ईजाद करने का लक्ष्य है। प्रौद्योगिकी के इन आने वाले बदलावों के आपसी मिलन के बारे में सोचने का एक तरीका यही है। मिश्रित यथार्थ प्रौद्योगिकी के साथ कंप्यूटिंग का सबसे शानदार तजुर्बा माइक्रोसाफट जैसी कंपनियां रच रही हैं। ऐसा तजुर्बा जिसमें डिजिटल दुनिया और आपकी भौतिक दुनिया एक हो जाती है। डेटा, ऐप और यहां तक कि वे संगी-साथी और दोस्त जिन्हें आप अपने फोन या टैबलेट पर चाहते हैं। अब जहां से भी आप उन तक पहुंचना चाहें- चाहे आप दफ्तर में काम कर रहे हों, ग्राहक से मिलने गए हों या कांफ्रेंस रूम में साथियों के साथ मिल कर काम कर रहे हों- हर जगह आपके साथ मौजूद हैं।

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कृत्रिम मेधा गहरी और पैनी समझ तथा पूवार्नुमान लगाने की क्षमता के साथ, जिसे अपने दम पर हासिल करना नामुमकिन होता, मानव क्षमता को बढ़ा कर हरेक तजुर्बे को जोरदार बना देती है। आखिर में, क्वांटम कंप्यूटिंग हमें मूर के नियम, जो कहता है कि एक कंप्यूटर चिप में ट्रांजिस्टरों की तादाद हर दो साल में दोगुनी हो जाती है- के दायरों से आगे जाने का सामर्थ्य देती है। ऐसा करने के लिए यह कंप्यूटिंग की हर उस भौतिकी को बदल देती है, जिसे हम आज जानते हैं और दुनिया की बड़ी से बड़ी और सबसे जटिल समस्याओं को हल करने के लिए गणना करने की ताकत देती है। मिक्स्ड रियलिटी (एमआर), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) और क्वांटम कंप्यूटिंग (क्यूसी) आज भले ही अलग-अलग स्वतंत्र धाराएं हों, पर भविष्य में वे एक साथ दस्तक देने वाली हैं। प्रौद्योगिकी की इन बहुत सारे रुझानों से जो देश या उसकी कंपनियां चूक जाती हैं, वक्त की दौड़ में उनका पीछे छूटना तय है।

आज हर देश और उसके उद्यमियों के लिए बेहद जरूरी है कि वह अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली प्राथमिकता के तौर पर अपने एजेंडें में डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करें। जिन जगहों पर यह हुआ है, उनमें भारत भी शामिल है। भारत में डिजिटल तकनीक का चलन जिस तेजी से बढ़ा है, उससे इसकी प्रासंगिक और उपादेयता और बढ़ गई है। ज्यादा से ज्यादा नागरिकों तक डिजिचल सेवाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा है। इसके प्रयोग से आर्थिक वृद्धि को रफ्तार मिलने की उम्मीदें बढ़ी हैं। मिसाल के लिए, यह औद्योगिक नीति और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को गढ़ने का अच्छा तरीका है। भारत में तमाम उद्यमशील गतिविधियों के जरिए जो हो रहा है, उसके साथ डिजिटल तकनीक को जोड़ना अपरिहार्य हो गया है। और इस काम को प्राथमिकता के साथ बड़े पैमाने पर करने की जरूरत है। अगर प्रौद्योगिकी तक पहुंच नहीं बन पाई तो संरक्षणवादी होने का सिर्फ यही मतलब है कि आप पीछे छूट जाएंगे।

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प्रौद्योगिकी की चर्चा अब ज्यादा बड़े पैमाने पर हो रही है। चाहे सार्वजनिक क्षेत्र में प्रौद्योगिकी को अपनाने की बात हो, या नए उद्यम (स्टार्ट-अप) हों, जो असल में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बुनियादी तौर पर नई चीजें ईजाद कर रहे हैं और वे इसे निर्यात भी कर सकते हैं। पर भारतीय अर्थव्यवस्था का अनूठे तरीके से डिजिटलीकरण हो रहा है। नई प्रौद्योगिकी को अपनाना और इसका व्यापक रूप से उपयोग करना ही मुनाफे पैदा करने की बात है। भारतीय सूचना तकनीक (आइटी) के क्षेत्र में अगला काम यही होना है। यह ज्यादा गहरा और ज्यादा व्यापक है। देश में उद्यमशील ऊर्जा काफी है, देश की प्रतिभा कमाल की है। औद्योगिक नीति के नजरिये से यह जानना है कि आपके लिए प्रौद्योगिकी की तरक्की को बढ़ावा देने के तमाम तरीके क्या हैं, ताकि आप हर जगह और ज्यादा आर्थिक वृद्धि हासिल कर सकें।d

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