बकंड़ा बनइ ( वाक्य रचना ) मुण्डारी

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बकंड़ा बनइ ( वाक्य रचना )

टुड़  कोरअः अपन – अपन आरोतो तइना ,मेनूदो नेअको बेगर सोतोः संगोम ते  बिनगा – बिनगा कजिलेरे बकंडा रअः ओरोतो का मुंडिओअ। एनामेनते टुड़को मियद् ओरोतोमुंडि नमोः ओअ ।

चिलका ( जैसे ) —

गड़ा गेना – गेना मियद उरिः सेनोः तन तइकेना । (नदी किनारे – किनारे एक गाय जा रही थी )

(शब्दों का  अपना – अपना अर्थ होता है ,लेकिन इनको बिना क्रम से अलग – अलग कहने में वाक्य का अर्थ नहीं बोध होता है। इसलिए शब्दों को क्रम के साथ कहने में ही एक अर्थपूर्ण वाक्य ज्ञात होता है ।)

बइन लेकाते बकंड़ा रेअः रोकोम (बनावट के विचार से वाक्य के भेद ।)

बनइ लेकाते बरअतःरे हटिडा कना ;-

(1) सोगड़ा  बकंड़ा ( सरल वाक्य )

(2) ओसर बकंड़ा (संयुक्त वाक्य )

(1) सोगड़ा  बकंड़ा – उदम ओड़ोः उदमनिः एसकरते बइकन बकंड़ा को गे सोंगड़ा बकंड़ाः कजिओः तना । ( क्रिया और कर्ता से सिर्फ बना हुआ वाक्य ही सरल वाक्य कहते हैं ।)

चिलका (जैसे) ;-

(1) अइञ् ज़ोम तना । (मैं खा रहा हूँ ।)

(2) उरिः अतिड़ तना । (गाय चर रही है । )

(3)  अएः सेनोः तना । (वह जा रहा है । )

(2) ओसर बकंड़ा को रे ‘अइञ’ ‘उरिः ’ ‘ ओड़ो ’ ‘अएः ’ उदमनिः तनअ ‘’जोमतना अतिड़त ओड़ो सेनोः  तना बकंड़ा रेअः उदम तनअः ।

इन वाक्यों में ‘ अइञ ’ ( मैं ) , उरिः (गाय) और (आएः)(वह)कर्ता है । जोमंतना ,(रहा हूँ ।) अतिड़ तना (चर रही है ) और सेनोः (जा रहा है।)

(2) ओसर बकंड़ा (संयुक्त वाक्य ) – मियद च बरियाते पुरअः सोंगड़ा बाकंड़ा को सोतोः केआते बइओः बकंड़ा को गे ओसर बकंड़ा कजिओ तना । ( एकया दो से अधिक सरल वाक्यों को सजाकर बनने वाले )

ओरोतो लेकाते बकंड़ा रेअः रोकोम

( अर्थ के विचार से वाक्य के भेद )

ओरोतो लेकाते बकंड़ा तुरि हनाटिड़ रे हटिड़ाकना ;–

( अर्थ के विचार से वाक्य को छह भागों मेँ बांटा गया है । )

(1) – मुंडि उदुब बकंड़ा (विधान वाचक वाक्य) –

    ओको कड़ांते उदम होबाओः तन रेअः मुंडि नमोः तना एना गे मुंडि  उदुब  बकंड़ा कजिओः तना । ( जिस वाक्य से क्रिया के होने का बोध होता है उसे ही विधान वाचक वाक्य कहतें हैं । )

चिलका (जैसे) ;-

राम उलिएः जोमाकदाः । (राम ने आम खाया है।)

 ने बकंड़ा ते होलामन बेड़ा रेअः मुंडि नमोः तना । (इस वाक्य से भूतकाल का बोध होता है ।)

(2) – कुनुलि ऊडुब बकंड़ा ( प्रश्नवाचक वाक्य )  —  ओको बकंडा ते कुनुलि रेअः मुंडि नमोः तना एनागे कुनुति उदुप कजिओः बकंड़ा तना । (जिस वाक्य से प्रश्न का बोध होता है उसे प्रश्नावाचक वाक्य कहते हैं ।)

(1) अनुप चिमतंडाए हिजुअः ? ( पिता कब आएंगे ?)

(2) चिनअः कमिबिन कमितना ? ( क्या काम कर रहें हैं ? )

 होड़ों जगर कुनुलि उदुब बकंडा को रें बकंड़ा एनेटेः च बकंडा टुंडू रे चि जोटोगोः तना बेगर चि जोनोटोः तेओः कुनुलि कजि ओः तना । (मुंडारी प्रश्नवाचक वाक्य में वाक्य शुरू के अंत में ‘ चि ’ जोड़ा जाता है । बिना )

‘ चि ’ जोड़े भी प्रश्न बोली जाती है ?

चिलका (जैसे) ;-

 (1) दादा कोतेम मना ? ( दादा कहाँ जा रहे हैं ?)

(2) मेयड़ एः हिजुः तना ? (क्या वह परसों आ रहा है ? )

(3) –  उजुर उदुब बकंड़ा (निषेधावाचक या नकारात्मक वाक्य )—

 ने बकंड़ाते उदम का होबाओः तनर रेअः मुंडि नमोः तना । (इस वाक्य से क्रिया के होनें का बोध होता है ।)

 चिलका (जैसे) ;-  (1) आइञ काइञ सेनोअः ।(मैं नहीं जाऊँगा ।)

      (2) काकाइञ् काएः सेनोअः । ( चाचा नहीं जाएंगे ।)

    ने बकंड़ा रे उदम का होवाओः रेअः मुंडि नमोः तना । (इस वाक्य में क्रिया के नहीं होने का बोध होता है ।)

(4) – इदु उदुब बकंड़ा (संदेहबोधक वाक्य ) – अड़अः उडुः ने बकंड़ा रे उदम होबाओः रअः मुंड़ि नमोः तना । एनागे इदु उदुब बकंड़ा कजिओः तना । (इस वाक्य में क्रिया के होने का बोध होता है, उसे ही संदेहबोधक वाक्य कहते हैं ।)

 चिलका (जैसे) ;-

(1) अनुप हिजुः जनए जाहः । (शायद पिताजी आ गए ।)

(2) सेनोः जनए जाअः । (शायद वह चला गया । )

ने बकंड़ा रे ‘जाअः’ उदम रअः मुंडि नमोः तना । ( इस वाक्य में ‘ जाअः’ क्रियाके संदेह होने का बोध होता है ।)

(5) –  अनाचु उदुब बकंड़ा (आज्ञावाचक वाक्य ) – ने बकंड़ा रे उदम होबाओः अनाचु जगर मुंडिओः तना । एगा गे अनाचु उदुब बकंड़ा कजिओः तना । (इस वाक्य में क्रिया के होने का आज्ञावचन का बोध होता है । उसे ही आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं । )

 चिलका (जैसे) ;-

(1)  दअः आउतबिन ।( पानी ला दो ।)

(2) जु राँची सेनोः पे । ( राँची जाइए )

ने बकंड़ा रे ‘ दअः ’ (पानी) लाने के लिए और राँची जाने के लिए आज्ञा दिया गया है ।

(6) –  सुपट मुंडि उदुब बकंड़ा (निश्चय वाचक वाक्य )-  ने बकंडा ते उदम होबाओ रअः सुपट मुंडि नमोःतना ।एना गे सुपट मुंडि उदुब बकंडा कजिओः तना  ।(इस वाक्य से क्रिया के होने का निश्चित बोध होता है । उसे ही निश्चय वाचक वाक्य कहते हैं । )

 चिलका (जैसे) ;-

 (1) जिलु मंडिइञ नमेअबद्कम ( मुझे निश्चित रूप से मांसाहार भोजन मिलेगा )

 (2) गोनोड़ टकाएः नमेअः बदकम । ( उसे निश्चित रूप से दाम  – राशि प्राप्त होगी ।)

‘ बदकम ’ बकंड़ा रेअः टुन्टु रे जोटो केआते सुपट मुंडि उदुब बकंडा बतूओः तना । ( ‘ बहकम ’ वाक्य के अंत मेँ जोड़ने के बाद निश्चित वाक्य बनता है ।)

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