Steps for self-dependent in India's defense sector|Self Dependent Indian Missile

एक समय में भारत अधिकांश रक्षा उपकरणों का आयात करता था, लेकिन अब वह रक्षा क्षेत्र में निर्यातक की बड़ी भूमिका में आ गया है। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने आर्टिलरी गन, स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, टैंकों और मिसाइलों, विस्फोटक, टैंकरोधी खानों और अन्य रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए अपनी मंजूरी दे दी। सरकार द्वारा कुल मिलाकर एक सौ छप्पन रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए यह मंजूरी दी गई है, ताकि मित्र देशों में भारतीय हथियारों के निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके। इससे पहले, भारत ने आकाश मिसाइल के निर्यात के लिए मंजूरी दी थी, अब ब्रह्मोस हथियार प्रणाली, बियांड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल एस्ट्रा और एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल नाग भी निर्यात के लिए तैयार हैं।
भारत सरकार अब रक्षा उत्पादन निर्यात प्रोत्साहन नीति के अनुसार 2025 तक पैंतीस हजार करोड़ रुपए के रक्षा उपकरणों के निर्यात का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है। यह नीति भारतीय उद्योग से घरेलू खरीद को दोगुना करने के लिए भी है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख जी सतीश रेड्डी के अनुसार अगले चार-पांच सालों में देश के रक्षा निर्यात में जबर्दस्त बढ़ोतरी होगी। भारतीय सेना के पास बड़ी मात्रा में स्वदेशी साजोसामान है। रेड्डी ने कहा कि हमने अपनी हर परियोजना में विकास और निर्माण के लिए उद्योगों को भागीदार बनने का न्योता दिया है। यहां तक कि मिसाइल प्रणाली जैसे अहम क्षेत्रों को भी निजी कंपनियों के लिए खोला गया है।

वास्तव में भारत की सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना महत्त्वपूर्ण है। अब आइडेक्स (रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवोन्मेष) के तहत स्टार्ट-अप संस्थाओं को मिलने वाले अनुदान को भी बढ़ाने की तैयारी है। आइडेक्स हमारे देश की बहुत प्रभावी और अच्छी तरह क्रियान्वित रक्षा स्टार्ट-अप प्रणाली है। यह आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में निर्णायक कदम है। आत्मनिर्भर भारत योजना के अंतर्गत भारत विभिन्न रक्षा उपकरणों और मिसाइल उत्पादन क्षमता को लगातार बढ़ावा दे रहा है।
कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया है। अब समय आ गया है कि भारत हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करे, क्योंकि अब भी भारत अपनी रक्षा जरूरतों का लगभग साठ प्रतिशत सामान आयात करता है, साथ ही मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक सहित कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आयात होता है। देश में प्रौद्योगिकी के स्तर पर कोरोना संकट के बाद अब बदले हुए भारत की कल्पना करनी होगी, जिसमें हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करते हुए देश को मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाना होगा। कोरोना संकट की वजह से दुनिया के अधिकांश देश चीन के खिलाफ हैं और चीन से अपनी मैन्युफैक्चरिंग हटाना चाहते हैं। ऐसे में भारत के लिए यह एक बड़ा अवसर है कि वह इन कंपनियों को भारत में काम करने का मौका दे और साथ में अपनी खुद की स्वदेशी तकनीक और प्रौद्योगिकी विकसित करे।
आज हमारे देश की अनेक सरकारी कंपनियां विश्व स्तर के हथियार बना रही हैं और भारत विश्व के बयालीस देशों को रक्षा सामग्री निर्यात कर रहा है। आत्मनिर्भर भारत की लक्ष्य प्राप्ति के लिए मेक इन इंडिया से आगे मेक फॉर वर्ल्ड की नीति पर चलते हुए केंद्र सरकार ने 2024 तक पैंतीस हजार करोड़ रुपए का सालाना रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है। सरकारी आंकड़ों से इतर अगर जमीनी हकीकत की बात करें, तो 2016-17 में भारत का रक्षा निर्यात 1521 करोड़ रुपए था, जो 2018-19 में 10745 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। यानी करीब सात सौ प्रतिशत की बढ़ोतरी। पिछले दिनों अमेरिका की प्रमुख रक्षा कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने भारत में औद्योगिक अवसरों की तलाश के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए।
कुछ समय पहले सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय सेना हथियारों की कमी से जूझ रही है। उसके पास टैंक और तोपों की कमी है और एक सौ बावन प्रकार के हथियारों में से एक सौ इक्कीस युद्ध के आवश्यक न्यूनतम मानकों के अनुरूप नहीं हैं। बाद में केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट पर सक्रियता दिखाते हुए सेना के लिए हथियारों की कमी काफी हद तक दूर कर दी। सरकार ने हाल ही में सेना के उप प्रमुख को सीधेतौर पर छोटी लड़ाई और गहन युद्ध के लिए छियालीस तरह के युद्धोपकरण रक्षा मंत्रालय की अनुमति के बिना खरीदने की छूट दी है।

सरकार ने बीते दिनों कुछ ठोस निर्णय लिए, जिनके सकारात्मक परिणाम अब सामने आने लगे हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णय था तीनों सेनाओं के प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का सृजन करना। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि तीनों सेनाओं में एक समन्वय स्थापित हुआ, जिससे उनकी आवश्यकताओं को स्ट्रीमलाइन करके उसके अनुसार रूपरेखा बनाने का रास्ता प्रशस्त हो गया। दूसरा प्रभावशाली कदम था रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा उनचास प्रतिशत से बढ़ा कर चौहत्तर फीसद करना। तीसरा सबसे बड़ा कदम था सेना के कुछ सामान (101 वस्तुओं की सूची) के आयात पर 2020-24 तक प्रतिबंध लगाना। परिणामस्वरूप इन वस्तुओं की आपूर्ति भारत में निर्मित वस्तुओं से ही की जाएगी।
बंगलुरू में तीन दिन तक चली सैन्य साजो-सामान और लड़ाकू विमानों की प्रदर्शनी में एयरो-स्पेस क्षेत्र में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता और देश की लगातार बढ़ती ताकत को देखते हुए कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि वह दिन दूर नहीं, जब इस क्षेत्र में भारत दुनिया का पहले नंबर का शक्तिशाली देश होगा। मौजूदा समय में अमेरिका, उत्तर कोरिया और रूस के बाद भारतीय सैन्य शक्ति दुनिया में चौथे नंबर पर है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के मुताबिक भारत अपने मित्र देशों के लिए हथियारों का नेट-एक्सपोर्टर बनना चाहता है। एयरोस्पेस क्षेत्र में भारत के बढ़ते दबदबे का ही असर है कि अब ‘मेक इन इंडिया’ के तहत दुनिया की हर बड़ी कंपनी भारत में ही हथियारों का निर्माण करना चाहती है। बदलते रक्षा परिदृश्य में भारत की सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना जरूरी है और विश्व ने भारत को अब एक भरोसेमंद रक्षा निवेश गंतव्य के रूप में मान्यता देना शुरू कर दिया है।

हमारे घरेलू उद्योगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है, इसलिए देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय उद्योग के कौशल संसाधनों और प्रतिभाओं का बेहतर उपयोग करना जरूरी है, क्योंकि आयातित टेक्नोलॉजी पर हम ब्लैकमेल का शिकार भी हो सकते हैं। सुरक्षा मामलों में देश को आत्मनिर्भर बनाने में सरकार और एकडेमिक जगत की भी बराबर की साझेदारी होनी चाहिए। इसके लिए मध्यम और लघु उद्योगों की प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण में अहम भूमिका हो सकती है।
चूंकि सरकार ने रक्षा उत्पादन क्षेत्र को सार्वजनिक और निजी दोनों के लिए खोल दिया है, इससे इस क्षेत्र में निवेश और नई प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिलने की संभावना है।पूरी दुनिया में छाए कोरोना संकट के बीच अब यह बात हमें समझ जानी चाहिए कि स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। आज हमारे देश में बने टीके का निर्यात पूरी दुनिया में हो रहा है। इसलिए अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ लगातार अपनी प्रौद्योगीकीय जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाते रहें तो वह दिन दूर नहीं, जब हम आत्मनिर्भर बन जाएंगे और दूसरे देशों पर किसी तकनीक, हथियार और उपकरण के लिए निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। कम समय में ही भारत रक्षा क्षेत्र में विश्व का प्रमुख उत्पादक देश बन कर उभरेगा।