Indian polity question and answer

संविधान ,संसद और राजनीति के महत्वपूर्ण प्रश्न |Important questions of constitution, parliament and politics

संविधान, संसद और राजनीति के प्रश्न

प्र 1 :- राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ संसद द्वारा अंतिम रूप से पारित किए गए किसी अधिनियम को गैर-संवैधानिक/धोखा/देशहित के विपरीत ठहराने के लिए कौन उत्तरदायी है? यदि कोई भी अधिनियम/कानून द्वारा देश की राष्ट्रीय संपत्ति/राजकोष को उसके अनुच्छेदों द्वारा नुकसान पहुंचाता है तो इसकी प्रतिपूर्ति के लिए कौन उत्तरदायी होगा?

. :- संसद द्वारा पारित सभी अधिनियमों का न्यायिक पुनरीक्षण करने का पूरा अधिकार न्यायपालिका को प्राप्त है। उच्चतम न्यायालय द्वारा किया गया निर्वचन और लिया गया निर्णय देश का कानून है और सब पर बाध्यकारी है। उच्चतम न्यायालय किसी भी अधिनियम को असंवैधानिक और अवैध घोषित कर सकता है। किंतु, देश के हित में क्या है, कौन सी नीतियां अपनाई जाएं और क्या कानून बनाए जाएं, यह सब मामले संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। यदि सरकार के किसी निर्णय अथवा कृत्य से राजकोष को हानि होती है या कोई वित्तीय अनियमितता के प्रमाण मिलते हैं तो भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक संसद को रिपोर्ट कर सकता है और लोक लेखा समिति की जांच के बाद मामला लोक सभा के सामने रखा जा सकता है और सदन उत्तरदायित्व तय कर सकता है। जनहित याचिका के द्वारा मामला उच्च न्यायालयों में भी उठाया जा सकता है।

प्र.2 :- जैसा की कतिपय स्रोतों में वर्तमान में ये विषय चर्चा में है कि कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी इटली के पासपोर्ट पर यात्रा कर रहे हैं तथा उनके पास जन्म से ही इटली की नागरिकता भी है जो कि उन्होंने त्यागी नहीं है फिर भी वह भारत में चुनावों में भाग लेकर भारत की संसद में सदस्य बनते हैं। क्या भारत में चुनावों में भाग लेने के लिए नागरिकता अनिवार्य नहीं है तथा इसके साथ-साथ उनकी माता जी माननीया कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के संबंध में भी मेरा यही प्रश्न है।

. :- यह तथ्यों और उनकी प्रामाणिकता सिद्ध होने का प्रश्न है। यदि मामला न्यायालय के सामने पहुंचता है तो वह तथ्यों, नागरिकता संबंधी अधिनियमों और सांविधानिक उपबंधों के आधार पर निर्णय करेगा।

भारत में चुनावों में भाग लेने के लिए भारत का नागरिक होना अनिवार्य है किंतु कोई व्यक्ति विशेष नागरिक नहीं है ऐसा कहने वालों को समुचित प्रमाण देकर अपना आरोप सिद्ध करना होगा।

प्र.3 :- योजना और परियोजना में क्या अंतर है ?

. :- योजना अर्थात ‘प्लान’ अधिक व्यापक संकल्पना है। परियोजना अथवा ‘प्रोजेक्ट’ अपेक्षाकृत सीमित अर्थों में प्रयोग होता है। किसी योजना के अंतर्गत, उदाहरण के लिए योजना आयोग के अधीन, बहुत-सी परियोजनाएं हो सकती हैं। व्यवहार में कई बार दोनों शब्दों को पर्यायवाची की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है।

प्र.4 :- मैं यह जानना चाहता हूं कि भारतीय राजनीति में ‘‘बाहर से समर्थन’’ का क्या अर्थ है।

. :- संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगी। इसका अर्थ निकलता है कि मंत्रिपरिषद को लोक सभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त होना चाहिए या कम-से-कम लोक सभा का बहुमत उसके विरुद्ध नहीं होना चाहिए। बहुमत न होने पर मंत्रिपरिषद यानि सरकार को त्यागपत्र देना होगा।

यदि किसी एक दल अथवा गठबंधन को सदन में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो तो कोई समस्या नहीं आती किंतु अगर ऐसा न हो तो सरकार को ऐसे दलों अथवा निर्दलीय सदस्यों का समर्थन खोजना पड़ता है जो अन्यथा सत्ताधारी दल या गठबंधन के साथ न जुड़े हों अर्थात बाहर हों। ऐसे लोग गठबंधन में या सरकार में शामिल हुए बगैर अर्थात बाहर से समर्थन दे सकते हैं। ऐसा करने के लिए वह अपनी शर्तें रख सकते हैं तथा किसी न किसी रूप में अपने समर्थन की कीमत भी मांग और पा सकते हैं। ऐसी स्थिति में राजनीति दूषित होती है।

प्र. 4:- दीवानी अथवा फौजदारी मामले क्या होते हैं? एक-एक उदाहरण देकर समझाइए।

. :- अर्थ संबंधी मामले अर्थात जिनमें संपत्ति, क्रय-विक्रय, लेन-देन आदि पर विवाद शामिल हों, दीवानी (सिविल) मामले माने जाते हैं और दीवानी यानि सिविल विधि प्रक्रियाओं और दीवानी (सिविल) अदालतों के द्वारा निपटाएं जाते हैं। उदाहरण के लिए मकान मालिक और किराएदार के बीच किराए पर या मकान खाली करने आदि पर मतभेद के मामले अथवा संपत्ति के स्वामित्व या उत्तराधिकार आदि से जुड़े मामले। कह सकते हैं कि वह सब कानूनी विवाद जो अपराध अथवा फौज़दारी से संबद्ध न हों, उन्हें दीवानी मामले कहा जा सकता है।

फौजदारी कानून के अधीन वह सब मामले आते हैं जो आपराधिक कृत्यों से जुड़े हों उदाहरण के लिए हत्या, बलात्कार, धोखाधड़ी, मारपीट, डकैती, चोरी आदि के मामले।

दीवानी मामलों के लिए प्रक्रिया संहिता है सिविल प्रोसिजर कोड और फौज़दारी मामलों के लिए क्रिमिनल प्रोसिजर कोड और इंडियन पैनल कोड।

प्र.5 :- राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में क्या अंतर है? राज्य ज्यादा शक्तिशाली होते हैं या केंद्र शासित प्रदेश।

. :- संविधान की अनुसूची 1 के अनुसार इस समय भारत संघ में 28 राज्य और 7 संघ राज्य क्षेत्र सम्मिलित हैं। प्रत्येक राज्य की अपनी सरकार और विधायिका हैं। संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण अनुच्छेद 245-246 और सातवीं अनुसूची की प्रविष्टियों के अनुसार सुनिश्चित होता है।

संघ राज्य क्षेत्र सिद्धांततः ऐसे क्षेत्र होते हैं जिनका प्रशासन सीधे संघ के हाथों में होता है। संसद विधि द्वारा संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासन की व्यवस्था कर सकती है।

‘केंद्र शासित प्रदेश’ शब्दबंध का प्रयोग बोलचाल में किया जा सकता है किंतु नितांत सही नहीं है। संविधान ‘संघ राज्य क्षेत्र’ अथवा ‘यूनियन टेरीटरीज़’ शब्दबंध का प्रयोग करता है।

संघ-राज्य क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति अपने द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से करेगा। प्रशासक को सामान्यतया उपराज्यपाल कहा जाता है। राष्ट्रपति किसी पड़ोसी राज्य के राज्यपाल को भी किसी संघ-राज्य क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त कर सकता है। इस प्रकार नियुक्त राज्यपाल प्रशासक के कृत्यों का निर्वाह राज्य की मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना स्वतंत्र रूप से करेगा (अनुच्छेद 239)। संसद विधि द्वारा किसी संघ-राज्य क्षेत्र के लिए विधान मंडल तथा मंत्रिपरिषद का सृजन कर सकती है। ऐसा विधान मंडल तथा मंत्रिपरिषद पुडुचेरी संघ-राज्य क्षेत्र एवं दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए बन चुका है। अंडमान और निकोबार द्वीपों के संघ-राज्य क्षेत्र के लिए विधान मंडल के स्थान पर एक नामनिर्देशित निकाय है (अनुच्छेद 239क)। संघ-राज्य क्षेत्र का प्रशासक राज्यों के राज्यपालों की भांति अध्यादेश जारी कर सकता है (अनुच्छेद 239ख)। सिवाय उन संघ-राज्य क्षेत्रों के जहां विधान मंडल कार्य कर रहा हो, अन्य सभी ऐसे राज्य क्षेत्रों की शांति, प्रगति तथा सुशासन के लिए राष्ट्रपति को विनियम बनाने की शक्ति प्राप्त है (अनुच्छेद 239 क तथा 240)। संसद विधि द्वारा किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय का गठन कर सकेगी या उसके प्रयोजनों के लिए किसी न्यायालय को उच्च न्यायालय घोषित कर सकेगी (अनुच्छेद 241)।

स्पष्ट है कि संविधान के अनुसार राज्यों को कुछ अपनी शक्तियां प्राप्त हैं जबकि संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन संघ सरकार के ऊपर निर्भर होगा। जहां, जैसे पुडुचेरी और दिल्ली में, विधान सभा हैं भी, उनकी शक्तियां और अधिकार क्षेत्र सीमित हैं।

प्र.6 :- कैबिनेट मंत्री यदि अपना त्यागपत्र देना चाहे तो किसे देगा और उसके बाद उस पद को कौन संभालेगा?

. :- मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करते हैं। सभी मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं। यदि किसी मतभेद के कारण अथवा व्यक्तिगत कारणों से कोई व्यक्ति अपने पद भार से मुक्त होना चाहे तो वह अपना त्यागपत्र प्रधानमंत्री को दे सकता है। यदि प्रधानमंत्री त्यागपत्र को स्वीकार किए जाने की सलाह के साथ राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो त्यागपत्र को राष्ट्रपति स्वीकार कर लेते हैं। यह प्रधानमंत्री पर निर्भर है कि वह रिक्त पद का दायित्व स्वयं संभालें, किसी अन्य मंत्री को अतिरिक्त भार के रूप में सौंपे या फिर किसी नए मंत्री का चयन करें।

(देखिए संविधान का अनुच्छेद 75)

प्र.:- भारत में अर्द्ध न्यायिक निकाय क्या हैं। क्या ये संवैधानिक निकाय हैं और क्या इनके द्वारा लिए गए निर्णय को भारत की पारंपरिक अदालतों के जरिए पुनरीक्षण/चुनौती दी जा सकती है?

. :- अर्द्ध न्यायिक निकाय, प्रशासनिक अधिकरण अथवा ट्रिब्यूनलों की नियुक्ति संवैधानिक है। इनके द्वारा दिए गए निर्णयों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है यानि अपील की जा सकती है और पुनरीक्षण की मांग की जा सकती है।

संविधान (42वां संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा नया भाग 14 क तथा अनुच्छेद 323 क और 323 ख जोड़े गए। इसमें संसद तथा राज्य विधानमंडलों को शक्ति दी गई है कि वे विधि द्वारा प्रशासनिक अधिकरणों का गठन कर सकते हैं। ये अधिकरण लोक कर्मचारियों की भर्ती तथा सेवा की शर्तों से संबद्ध सेवा के सभी मामलों में विवादों तथा शिकायतों का अधिनिर्णयन कर सकते हैं। इस प्रकार के कई प्रशासनिक अधिकरणों का गठन किया गया है। उन पर सेवा संबंधी मामलों से उत्पन्न विवादों में उच्चतम न्यायालय के सिवाय अन्य किसी न्यायालय की अधिकारिता नहीं होगी। इस प्रकार, प्रशासनिक सेवा अधिकरण अधिनियम, 1985 सेवाओं से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए अधिकरणों की स्थापना कर इस क्षेत्र से उच्च न्यायालय के अधिकारों की समाप्ति कर देता है और उच्चतम न्यायालय में केवल अनुच्छेद 136 के अंतर्गत अपील की जा सकती है (सम्पथ बनाम भारत संघ, ए.आई.आर. 1987 एस.सी. 386; तमिलमनि बनाम भारत संघ, ए.आई.आर. 1992 एस.सी. 1120 । एल. चंद्रकुमार बनाम भारत संघ, ए.आई.आर. 1997 एस.सी. 1125 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 323 क के उपखंड 2 (घ) तथा 323 ख के 3 (घ) असंवैधानिक हैं क्योंकि वे उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को न्यून करते हैं।

प्र. 8:- अपने बेरुबारी प्रांत को भारत ने पाकिस्तान को 9वें संविधान संशोधन द्वारा क्यों सौंप दिया?

. :- भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न गणराज्य है। संपूर्ण प्रभुत्व संपन्नता के लक्षणों में नए राज्य क्षेत्र अर्जित करना तथा अपने राज्य का कोई अंश आवश्यकता पड़ने पर अर्पित भी कर सकना शामिल हैं।

भारत-पाक समझौतों के अंतर्गत कुछ क्षेत्रों की अदला-बदली, विभाजन आदि अनिवार्य हो गया था किंतु भारत के राज्य क्षेत्र का कोई भाग किसी दूसरे को सौंप सकने के लिए यह जरूरी था कि संविधान में संशोधन किया जाए।

10 सितंबर, 1958 के भारत-पाक समझौते के अनुसार बेरुबारी संघ संख्या 12 का विभाजन कर उसका आधा भाग पाकिस्तान को देना तय हुआ।

पाकिस्तान के साथ हुए समझौते का पालन करने और उसे लागू करने के लिए ही 9वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया।

[ देखिए बेरुबारी के संबंध में संघ तथा बस्तियों का विनियम, ए.आई.आर. 1950 एस.सी. 845,857 ]।

प्र.9 :- अगर कोई लड़का पिछड़ी जाति का है और वह एक सामान्य जाति वर्ग की लड़की से शादी करता है तो क्या उसकी पत्नी शादी के बाद सामान्य जाति वर्ग में रहेगी मतलब वह पिछड़ी जाति वर्ग की महिला नहीं कहलाएगी।

. :- अगर कोई सामान्य जाति अथवा तथाकथित अगड़ी जाति का व्यक्ति गोद लिए जाने से, धर्म परिवर्तन से या विवाह संबंध के द्वारा किसी पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति अथवा दूसरे धर्मावलंबी के साथ जुड़ जाता है तो वह उन आरक्षण आदि का हकदार नहीं हो सकता जो पिछड़ी जाति आदि वाले व्यक्ति को उपलब्ध होते हैं।

[ देखिए अनुच्छेद 15(4) और 16(4) तथा वलसम्मा पॉल बनाम कोचीन यूनिवर्सिटी, ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 1011; त्रिपुरा राज्य बनाम नमिता मजूमदार (1998) 9 एस.सी.सी. 217)।

प्र.10 :- खाद्य सुरक्षा कानून भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत बनाया गया है?

. :- संविधान के अनुच्छेद 245-246 में संघीय संसद और राज्यों के विधान मंडलों की विधायी शक्तियों और अधिकार क्षेत्रों का निरूपण किया गया है। संविधान की सातवीं अनुसूची में पहली सूची है ‘संघ सूची’ अर्थात उन विषयों की सूची जिन पर केवल संघ की संसद कानून बना सकती है। दूसरी सूची ‘राज्य सूची’ है, जिसमें शामिल विषयों पर केवल राज्यों के विधान मंडल ही कानून बना सकते हैं। तीसरी सूची ‘समवर्ती सूची’ है, जिसमें दिए गए विषयों पर राज्य और संघ दोनों की विधायिकाएं कानून बना सकती हैं। इस तीसरी सूची की प्रविष्टि 33(ख) के अनुसार ‘खाद्य पदार्थों’ के व्यापार और वाणिज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और वितरण’ लोकहित में करने का पूरा विषय ऐसा है जिस पर संसद और राज्यों के विधान मंडल दोनों ही कानून बना सकते हैं। राज्य की नीति के 47वें निदेशक तत्व के अनुसार ‘‘राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कार्यों में मानेगा’’। इस आधार पर संघीय संसद और राज्यों की विधायिका दोनों का ही दायित्व बनता है।

प्र.11 :- भूमि अधिग्रहण कानून भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत बनाया गया है?

. :- ‘‘संपत्ति का अर्जन और अधिग्रहण’’ सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में 42वीं प्रविष्टि है जिसके अनुसार इस विषय में कानून संघीय संसद और राज्यों के विधान मंडल दोनों बना सकते हैं।

अनुच्छेद 31(क) के अंतर्गत राज्य द्वारा किसी संपदा के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह मूल अधिकारों (अनु. 14 या 19) से असंगत है।

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