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(1) à सामान्य परिचय :– ‘ हो ‘ भाषा मुण्डा एक भाषा की एक शाखा है । मुण्डा या मुण्डारी भाषा का उध्दव ‘ खेखारी ‘ से मानते हैं ।खेखारी आस्ट्रिक भाषा परिवार की एक मुख्य या मूल भाषा है । इस भाषा को समूल को आस्ट्रीक या आस्ट्रो –एशियाटिक भी कहा जाता है ।
(2)à ध्वनितंत्र — मुंडा भाषा में ध्वनि तंत्र की अपनी कुछ विशिष्टताएँ हैं,जो हो भाषा में भी विद्यमान है ।इसमें एक का कल्यस्पर्श ध्वनि ( ग्लोटलस्टॉप ) का व्यवहार होता है । संस्कृत मे ‘ अ ‘ के लोप होने पर ‘ ड ‘ चिन्ह का प्रयोग होता है ,परन्तु हो में इसके लिए ( । ) चिन्ह लगता है ।
(3)à ‘ हो ‘ भाषा में क , त ,प , आदि व्यंजनों का एक अवरूध्द रूप भी प्रयुक्त रूपी होता है। अंग्रेजी में इसे ‘ चेक्ड कॉन्सोनेन्ट ‘ कहा जाता है ।हो भाषा से सघोष महाप्राय ध्वनियों का उच्चारण न होने के कारण उनका लोप हो जाता है यथा :-
प्रचलित — अघोषव्यंजन अप्रचलित — सघोषव्यंजन
क वर्ग — क,ग,ड़ ख , घ ।
च वर्ग — च,ज,ञ छ , झ ।
ट वर्ग — ट,ड,ण ठ , ढ ।
त वर्ग — त,द,न थ , घ ।
प वर्ग – प,ब,म फ , भ ।
य वर्ग — र ,ल ,स ,ह य ,व ,श ,ष ।
हो भाषा की यह विशेषता है कि शब्द के आरम्भ में ड़ , ञ जैसी नाशिक्य ध्वनियों का प्रयोग हो सकता है । जो आर्य भाषाओं में नहीं है । ड ,ञ का प्रयोग शब्द के मध्य और अंत मे भी होता है।
यथा –सिंड़्बोंगा , आञ ( मैं ) आदि ।
कायपर ने ‘ लिगुआ ‘ नामक पत्रिका ‘ खण्ड ‘ 14 1935 में कोलभाषा ( मुंडा , हो आदि ) के सन्दर्भ में व्यंजन – परिवर्तन ( कॉन्सोनेन्ट बैरियेशन ) शीर्षक लेख में यह प्रस्तुत किया है कि कहीं -कहीं क ,ख ,ग ,घ ध्वनियाँ ‘ ह् ‘ मे बदल जाती है ।इसमें हो भाषा में ‘ ख ‘ और ‘ घ ‘ ,ल ध्वनियाँ नहीं है ।
जैसे कि पूर्व में उल्लेख किया जाता है । ‘ हो ‘ भाषा में स्पर्शध्वनि के उच्चारण में वायु के अवरोध की क्रिया पूर्ण नहीं होती है, इस कारण स्पर्शध्वनि के स्थान पर ‘ संघषी ‘ ध्वनि का उच्चारण होता है । यह संघर्षी ध्वनि महाप्राण ‘ ह ‘ रूप में व्यक्त होती है ।यति — होन् , होए , होलोड़ , होनोर ( आदि ) ।
(4) — रूपतंत्र
‘ हो ‘ भाषा में संस्कृत के भी कई शब्द और ध्वनियाँ मिलती है ,जो आर्य भाषा भाषियों के सम्पर्क में आने का परिणाम लगता है ।संस्कृत का ‘ दारू ‘ हो में ‘ दरू ‘ ( वृक्ष ) के रूप में प्रयुक्त होता है । संस्कृत का ‘ द्रय हो में ‘ दुम्बु ‘ ( पेड़ या पौधा ) के रूप में प्रयुक्त होता है । उसी प्रकार ‘ सीता ‘ का प्रयोग खेत में हल चलाने से उभरी रेखा से है ,जब कि हो भाषा में ‘ सी ‘ शब्द का प्रयोग खेत जोतने के लिए होता है । जिसे ‘ सी ‘ तनी के रूप में बोला जाता है । संस्कृत में ‘ सहा ‘ हो में ‘ सादोम ‘ ( घोड़ा ) के रूप में बोला जाता है ।’ हो ‘ भाषा का साम्य रूपतंत्र एवं वैयाकरणिक दृष्टि से संस्कृत से भी मिलती है जो आर्यभाषा के सम्पर्क में रहने का एक प्रमाण है । यथा :–
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संस्कृत एकवचन व्दिवचन बहुवचन
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हो अहम् आवाम वयम
देवनागरी आञ आलिंग आने
( हिन्दी ) मैं हमदोनों हमलोग
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परन्तु हिन्दी में व्दिवचन (दो) का लोप हो गया ‘ हो ‘ भाषा की एक विशेषता यह भी है कि क्रिया पदों के एक या अधिक वर्गों की अथवा अक्षर – ध्वनियों की आवृति करती है । यह प्रयोग अर्थ को सघन के लिए किया जाता है , तथा दल (मारना ) कसे ददल ( ज्यादा मारना ) ।
‘ हो ‘ भाषा योगात्मक भाषा में आती है। योगात्मक भाषा की यह विशेषता है कि उसमें सम्बंध तत्व को भी अर्थ – तत्व के साथ जोड़ दिया जाता है । इसके तीन भाग होते हैं :–
(1) -अश्लिष्ट
(2)- श्लिष्ट
(3)- प्रश्लिष्ट
आग्नेय भाषाएँ ( हो सहित ) मध्य योगात्मक ,अन्त्य योगात्मक और पूर्वान्त योगान्तक होती है । ‘ हो ‘ भाषा में धातुएँ अक्षर होती है । इनमें प्रायः प्रथम अक्षर पर बलाघात होता है । भाषा शास्त्रियों का अनुसार है कि अक्षर धातु पहले एकाक्षर रही होगी । इनमें क्रिया में उपसर्ग और प्रत्यय भी मिलते है , जो शब्द हिन्दी या देवनागरी लिपि से ‘ हो ‘ भाषा में आये हैं उनमें प्रयुक्त व्यंजन और स्तर में उच्चारण भेद ( ध्वनितंत्र ) के कारण परिवर्तन हो जाता है ।
परन्तु अर्थतंत्र या अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है ।यथा —
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हिन्दी — हो हिन्दी — हो
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1- वकील उकिल वहन ओजोन
2- वंश बोंस योगी जुगि
3- यात्रा जतारा युग जुग
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कहीं -कहीं उच्चारण में व्यंजन का लोप भी हो जाता है:–
हिन्दी — हो
महाजन माजोन
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हिन्दी में उच्चारित घोष ध्वनियाँ ’ हो’ में आने पर अघोष हो जाती है —
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हिन्दी — हो हिन्दी — हो
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ठीक टिकि सुख सुकु
घर गर खाना काना
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‘ हो ’ में संस्कृत शब्द के कई रूप हैं कुछ शब्द अविकल रूपों मिलते है और कुछ ‘ हो ‘ की ध्वनि प्रणाली के अनुसार परिवर्तित रूप में ये शब्द प्राचीन ,मध्य ,और आधुनिक आर्य भाषा काल में मिश्रित हुए होंगें । ‘ हो ‘ में संस्कृत शब्दों का अर्थ ,संकोच , अर्थादेश का अर्थ विस्तार भी हुआ है । कतिपय उदाहरण प्रस्तुत है :—
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संस्कृत हो हिन्दी
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1- पर्यकम पारकोम खाट या खटिया
2- शकम् सक्म पत्ता
3- तात ततांग पिता
4 – मानव मनोवा मनुष्य
5 – दाय दयि नौकर
6- मूल मुनु मुख्य,प्राचीन
7- पंचायत पोंचइति पंचायत
8 – शूकर सुकरी सुअर
9 – दारू दरू पेड़
10- छत्रय चातोय छांता
11 – शमशान ससन कब्रगाह
12 – प्रधान परदान प्रमुख व्यक्ति
13- पर्व पोरोब त्योहार
14- कुछ किलि गोत्र ,वंश
15 – सूत्रम सुतम सूत
16 – देशम् दिसुम देश
17 – अकृण अकिरिंग बेचना
18 – समय सोमोय समय
19- वक बका बगुला
20- दणडम डंडोम डंडा
21- परम परोम ,व्योरोप बड़ा
22 – गुपि गोप ( गुपितन ) चरवाहा
23 – रस रसि चावल की शराब या रस
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‘ हो ’ में अनेक शब्द विदेशी भाषाओं से भी आये हैं। यथा फारसी के
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फारसी हो हिन्दी
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1- जर ( सेजर ) जरविड़ विषधर साँप
2- दस्तुर दोस्तुर प्रचलन , प्रथा
3- तहसींल तसिल लगान
4- हाजरी हाजिरि उपस्थिति
5- अरक अरकी रस चावल की शराब या रस
6 – पुस्त पुति पुस्तक
7- तारीक तरिक तिथि
8- फौजदारी पाउदरि फौजदारी
9- मुकदमा मोकरदमा मुकदमा
10- खस्सी कसी बकरा
11- अमीन उमीन जमीन पैमाइस करने वाला
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अंग्रेजी योरोपीय हो हिन्दी
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1- डॉक्टर डकडर चिकित्सक
2- बटम बोटोम बटम
3- मैशीन मिसिन मशीन
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