जेपीएससी एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, लेकिन इसके हरेक परीक्षा के पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठते रहा है. पीसीएस परीक्षा किसी भी राज्य का यह सर्वाधिक लोकप्रिय परीक्षा होता है. उल्लेखनीय है कि झारखंड सेवा आयोग का गठन वर्ष 2002 मे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315(1) के अनुसार किया गया है, इसी उद्देश्य को लेकर कि यहां के योग्य और प्रतिभावान अधिकारियों का चयन किया जा सके, लेकिन आरंभ से ही यहां के नेताओं एवं जेपीएससी के पूर्व अध्यक्ष सहित अन्य अधिकारियों पर काले कारनामे का पर्दाफाश हो चुका है.. और हर बार की तरह अब 7वीं-10वीं सिविल सेवा परीक्षा मे उम्र सीमा निर्धारण को लेकर एक बार फिर देश के शीर्ष न्यायालय मे मामला जा चुका है.

प्रीलिम्स के कुछ दिन पूर्व में ही जिसकी 22 सितम्बर को सुनवाई होनी है. वहीं जेपीएससी 19 सितम्बर को प्रीलिम्स परीक्षा आयोजित की जानी है. अब ऐसे मे आयोग परीक्षा लेती है तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय से बड़ा झटका मिल सकता है, चुंकि परीक्षा का प्रत्येक वर्ष आयोजन ना कराना छात्रों का कसूर नहीं है, बल्कि पीछे छूट गये वर्षों का भरपाई स्वत: सरकार को देनी चाहिए आखिरकार यह सब विवाद बना तो सरकार की नीति या नियमावली मे कहीं ना कहीं छात्रों के साथ अन्याय किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने भी छात्रों को मांगों को जायज ठहराते हुए सरकार और आयोग को नोटिस किया है इसका जवाब दिये बिना परीक्षा आयोजन कराना न्यायसंगत नहीं है, बल्कि मामला और फंस जाएगा इसलिए लाखो छात्रों का मांग है परीक्षा तत्काल सरकार को स्थगित किया जाना चाहिए कि जब तक फैसला ना आ जाए. जेपीएससी अभ्यर्थी उमेश प्रसाद का कहना है कि नियमत: जेपीएससी को प्रत्येक वर्ष परीक्षा आयोजित करनी थी. जिसके फलस्वरूप जेपीएससी गठन से लेकर अभी तक लगभग 20 परीक्षा हो जानी चाहिए थी, लेकिन सरकार व अधिकारियों इस लेकर कभी भी पारदर्शी व निष्पक्ष परीक्षा कराने को लेकर गंभीर ना दिखाई दिया ये राज्य के हरेक सरकार की नकामी है.

जब 2020 मे जेपीएससी की ओर से निकाले गए विज्ञापन में उम्र का निर्धारण वर्ष 2011 रखा गया था लेकिन इसे वापस लेते हुए दोबारा संशोधित विज्ञापन-2021 मे जारी किया गया. जिसमें उम्र के निर्धारण वर्ष 2016 कर दिया गया जो न्यायोचित नही है चुंकि 2011 से लेकर 2015 तक का उम्र कट अप डेट छिना गया उसका भरपाई कौन करेगा. परीक्षा नहीं ली गई तो छात्रों का क्या दोषी 5 वर्ष उम्र अधिक होने की वजह से हजारों अभ्यर्थी इस परीक्षा में शामिल नहीं हो पा रहे हैं.. जो उनके साथ अन्याय हुआ है अवसर से वंचित रखा गया है.
ऐसे मे सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस करते हुये ये अवगत करा दिया कि आपने छात्रों के साथ अवसर का समानता से वंचित किया लिहाजा शीर्ष न्यायालय ने संविधान का अनुच्छेद 309 के तहत राज्य सरकार और जेपीएससी को नोटिस जारी किया है.

वहीं, अभ्यर्थी बतातें है कि अनुच्छेद 309 मे विधानमंडल को उनकी सेवा में नियुक्त लोक सेवकों की भर्ती और सेवा की शर्तों के विनियमन की शक्ति प्रदान करता है उक्त अनुच्छेद के अंतर्गत लोक सेवकों की भर्ती तथा उनकी सेवा की शर्तों के लिए बनाया गया. कोई अधिनियम किसी भी मूल अधिकार का अतिक्रमण नहीं कर सकता. जबकि सातवीं जेपीएससी का नियमावली मे अवसर की समानता का उल्लंघन किया गया है जो छात्रों का मांग जायज है परिणामस्वरूप शीर्ष न्यायालय का रूख सकरात्मक रहा, निश्चित है आगे की सुनवाई मे छात्रों के हित और अधिकार को देखते हुए माननीय न्यायालय द्वारा फैसला लिया जाएगा.