भारत में एफडीआई प्रवाह के रुझान पर एक नजर
लगातार तीन वर्षों (2016-17 से लेकर 2018-19) तक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रवाह में एक अंक की वृद्धि दर्ज की गई। यह एक आश्चर्य था। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में इसके मंत्री देश के भीतर एफडीआई प्रवाह में आई तेजी के लिए अक्सर अपनी उपलब्धियों का जिक्र करते रहते थे। वर्ष 2014-15 में एफडीआई प्रवाह 25 फीसदी बढ़कर 45 अरब डॉलर रहा था और 2015-16 में यह फिर से 23 फीसदी की उछाल के साथ 56 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। लेकिन मोदी सरकार के इन शुरुआती दो वर्षों के बाद एफडीआई प्रवाह के मामले में किस्मत का साथ मिलना मानो बंद हो गया। वर्ष 2016-17 में एफडीआई वृद्धि केवल 8 फीसदी और उसके अगले साल 1.2 फीसदी ही रही। हालांकि 2018-19 में थोड़े सुधार के साथ एफडीआई प्रवाह में 1.7 फीसदी की बढ़त देखी गई और यह 62 अरब डॉलर रहा। इस दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में भी गिरावट का रुख देखा गया। वर्ष 2016-17 में 8.3 फीसदी पर रही वृद्धि दर 2017-18 में 7 फीसदी और 2018-19 में 6.1 फीसदी ही रही।
लेकिन एफडीआई प्रवाह में बड़ा बदलाव वर्ष 2019-20 में देखा गया जो मोदी के दूसरे कार्यकाल का पहला साल था। भले ही जीडीपी वृद्धि 2019-20 में 4.2 फीसदी पर लुढ़क गई लेकिन एफडीआई प्रवाह 18 फीसदी की तीव्र वृद्धि के साथ 73 अरब डॉलर रहा। ऐसा होने की क्या वजह थी? आर्थिक वृद्धि के गिरावट वाले साल में जब निर्यात में भी कमी दर्ज की गई थी, एफडीआई प्रवाह किन वजहों से बढ़ा?
सरकार एफडीआई प्रवाह के रूप में चार अवयवों की वर्गीकृत करती है- एफडीआई इक्विटी, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा स्वीकृत एफडीआई आवेदन, इक्विटी पूंजी प्रवाह एवं पुनर्निवेशित आय और अन्य पूंजी। इन सभी श्रेणियों में पिछले साल तेजी देखी गई लेकिन एफडीआई इक्विटी एवं अन्य पूंजी श्रेणियों में अधिक उछाल रही। इक्विटी निवेश 13 फीसदी बढ़कर करीब 50 अरब डॉलर रहा जबकि अन्य पूंजी श्रेणी 150 फीसदी की जबरदस्त छलांग के साथ 8 अरब डॉलर रही। अनिगमित इकाइयों में इक्विटी प्रवाह भी बढ़ा लेकिन उसकी राशि महज 1.2 अरब डॉलर ही थी। पुनर्निवेशित आय भी 3 फीसदी की सुस्त दर के साथ 14 अरब डॉलर रही थी।
पुनर्निवेशित आय में वृद्धि की अपेक्षाकृत धीमी दर चिंता का विषय है क्योंकि यह विदेशी निवेशकों के मन में विश्वास की कमी को दर्शाता है और वे मौजूदा उद्यमों से होने वाली आय या लाभांश को निकालने लगते हैं। यह भी हो सकता है कि रिटर्न इतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे थे कि निवेशक अपनी आय को दोबारा निवेश करने के बारे में सोचें।
लेकिन अधिक उलझाने वाला पहलू अन्य पूंजी में आई 150 फीसदी की उछाल है। इस श्रेणी में मोटे तौर पर वरीय पूंजी जैसे अद्र्ध-इक्विटी साधनों के जरिये हुआ निवेश शामिल होता है। एक साल में ही निवेश की इस श्रेणी में इतनी तेजी क्यों आई? सरकार ने स्पष्ट किया है कि अन्य पूंजी के संदर्भ में आंकड़ा पिछले दो वर्षों के औसत के आधार पर जारी होता है। वर्ष 2017-18 और 2018-19 में अन्य पूंजी प्रवाह क्रमश: 2.91 अरब डॉलर और 3.27 अरब डॉलर रहा था। फिर 2019-20 में इस श्रेणी में इतनी अधिक उछाल कैसे आ गई? इसकी एक व्याख्या सरकारी आंकड़ा संकलन व्यवस्था में हुआ व्यापक बदलाव हो सकती है। जब 2018-19 में हुए अन्य पूंजी प्रवाह के आंकड़े पहली बार जारी किए गए थे तो यह 64.37 अरब डॉलर के कुल एफडीआई प्रवाह में 5.74 अरब डॉलर था। एक साल बाद इस साल के अन्य पूंजी प्रवाह को संशोधित कर 3.27 अरब डॉलर कर दिया गया। इसकी वजह से उस साल का कुल एफडीआई प्रवाह भी घटकर 62 अरब डॉलर पर आ गया था।
अधिक संभावना यह है कि 2019-20 के दौरान के अन्य पूंजी प्रवाह को आगे चलकर संशोधित कर दिया जाए। ऐसा होने पर पिछले वित्त वर्ष का कुल एफडीआई प्रवाह भी कम हो जाएगा।
बहरहाल, भारत के एफडीआई प्रवाह के आंकड़ों से तीन प्रमुख रुझान दिखाई देते हैं। पहला, भारत का चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2019-20 में कम हुआ है और यह दोनों देशों के रिश्तों में आई तल्खी से पहले की बात है। वर्ष 2018-19 में चीन से भारत में 1.23 अरब डॉलर का एफडीआई आया था लेकिन 2019-20 में यह घटकर महज 0.16 अरब डॉलर रहा। इस दौरान हॉन्ग कॉन्ग से भारत में एफडीआई 0.59 अरब डॉलर से बढ़कर 0.69 अरब डॉलर हो गया।
दूसरा रुझान, भारत में एफडीआई के स्रोत के तौर पर मॉरीशस की भूमिका कम हुई है। भारत और मॉरीशस के बीच दोहरे कर से बचने के लिए हुई संधि के चलते एफडीआई इस देश के रास्ते से होता रहा है लेकिन 2016 में इस संधि को संशोधित किए जाने के बाद कम दरों का लोभ नहीं रह गया है। पिछले दो वर्षों से मॉरीशस भारत में एफडीआई का प्रमुख जरिया नहीं रहा है। उसके पहले तो मॉरीशस ही हर साल एफडीआई का प्रमुख उद्गम स्थल हुआ करता था। अब यह स्थान सिंगापुर ने ले लिया है और मॉरीशस की हिस्सेदारी सिंगापुर की आधी रह गई है।
तीसरे रुझान का ताल्लुक कर से बचाव करने वाले केमैन आइलैंड के उदय से है। वहां से एफडीआई प्रवाह पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ता रहा है। वर्ष 2018-19 में यह 3.7 अरब डॉलर रहा। नीदरलैंड भी कम कर दरों की वजह से जाना जाता है और वहां से भी भारत में एफडीआई प्रवाह 2019-20 में बढ़कर 6.7 अरब डॉलर रहा।
सरकार ने अपनी एफडीआई नीति की समग्र समीक्षा करने की घोषणा की है। इन प्रवृत्तियों की गहन पड़ताल जरूरी है ताकि अधिक टिकाऊ तरीके से विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने वाले कदम उठाए जा सकें।