नई शिक्षा नीति 2020

देश में 28 वर्षों बाद आई नई शिक्षा नीति में सराहने लायक ढेर सारी बातें हैं लेकिन इसके प्रभाव की असली परीक्षा इसके क्रियान्वयन में निहित है। इस नीति में देश को 21वीं सदी की चुनौतियों के लिहाज से कौशल संपन्न बनाने पर ध्यान केंद्रित है और कुछ मायनों में इस नीति के प्रस्ताव उस लक्ष्य को हासिल करते हुए भी दिखते हैं। माध्यमिक शिक्षा की बात करें तो नीति में समग्र शिक्षण पर जोर दिया गया है और कहा गया है कि कला, विज्ञान और वाणिज्य जैसे अलग-अलग विषयों में भेद नहीं किया जाए। यह भी कि उच्चतर माध्यमिक में पढऩे वाले छात्रों को भी चयन की स्वतंत्रता रहेगी। संगीत, कला और खेलों को छात्रों के चयन के लिए उपलब्ध कराना भी अपने आप में प्रगतिशील कदम है।
नीति ने आंशिक तौर पर इस बात को भी चिह्नित किया देश में बहुभाषी विविधता मौजूद है। उसने बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाओं के चयन का मामला राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों पर छोड़ दिया है। जबकि इससे पहले आए प्रस्ताव में कहा गया था कि हिंदी सिखाई ही जानी चाहिए। हालांकि इनमें से दो भाषाओं का भारत की स्थानीय भाषा होना जरूरी है।
बहरहाल यह खुला प्रश्न है कि ऐसे कदमों से बच्चे वैश्वीकृत विश्व के लिए पर्याप्त तैयार होंगे या नहीं? नए विश्व में मंदारिन और स्पेनिश अंग्रेजी के बाद दो सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के रूप में उभर रही हैं। हालांकि सन 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित होने के बाद से बच्चों के पढ़ाई अधूरी छोडऩे की दर में नाटकीय रूप से कमी आई है लेकिन जैसा कि एएसईआर की रिपोर्ट में हर वर्ष कहा जाता है, असली चुनौती अभी भी कमजोर बुनियादी शिक्षण की है। नई नीति की असली परीक्षा इसी बात में निहित होगी कि वह इस क्षेत्र में कैसे नतीजे दे पाती है। कुल मिलाकर भारत जीडीपी का महज 3 फीसदी शिक्षा पर व्यय करता है। यह हमारे सामने मौजूद चुनौतियों को देखते हुए एकदम अपर्याप्त है।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नई शिक्षा नीति में कई अच्छी पहल शामिल हैं। उदाहरण के लिए शीर्ष 200 संस्थानों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करना, प्रतिस्पर्धी और समकक्ष समीक्षा वाले अनुदान प्रस्तावों को वित्तीय सहायता देने के वास्ते स्वतंत्र राष्ट्रीय शोध फंड की शुरुआत, उच्च शिक्षा निगम को बाजार से दीर्घावधि के ऋण जुटाने देने की अनुमति और विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में स्थायी केंद्र स्थापित करने की इजाजत कई दीर्घकालिक दिक्कतों को दूर करने में सहायक साबित होंगे। ये सभी कदम अग्रसोची हैं लेकिन मुद्दा यह है कि कहीं ये केवल नेक इरादा बनकर न रह जाएं। यकीनन इस सरकार का प्रदर्शन भी बहुत भरोसा पैदा करने वाला नहीं है। हाल के दिनों में भारतीय प्रबंध संस्थानों में-जिन्हें कुछ वर्ष पूर्व स्वायत्तता मिली है-एमबीए की अवधि को लेकर जो कुछ हुआ उससे भी इसे समझा जा सकता है। पहले भी विवादों में रहे तकनीकी शिक्षा नियामक अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षण परिषद ने एमडीआई गुडग़ांव के तीन पाठ्यक्रमों की मान्यता समाप्त कर दी। यह संस्थान देश के शीर्ष 20 प्रबंध संस्थानों में शामिल है।

निजी संस्थानों और प्रमुख सरकारी विश्वविद्यालयों को विस्तार के लिए शुल्क जुटाने से रोकने से स्वायत्तता केवल कागजी रह जाएगी। इसके अलावा निजी विश्वविद्यालयों के लिए चरणबद्ध स्वायत्तता से भी यह सुनिश्चित होगा कि सरकार का नियंत्रण बना रहे। स्वायत्तता के निर्धारण के लिए कई अन्य मानक तय किए गए हैं। सन 2020 के अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्थिति और खराब रही और वह सऊदी अरब तथा लीबिया के स्तर पर आ गया। यह बताता है कि शिक्षा मंत्रालय को देश को वैश्विक बौद्धिक जगत में अग्रणी बनाने में कड़ी मेहनत करनी होगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षण को अहम मानती है, इसीलिए उसने चार साल की बीएड डिग्री की सिफारिश की है। लेकिन भारत की समस्या गवर्नेंस की है। रिश्वत देकर अयोग्य लोग शिक्षक बन गए हैं। जब तक राज्य सरकारें इस समस्या का हल नहीं करतीं, तब तक कोई भी अच्छी नीति भारतीय बच्चे का भविष्य संवारने में मदद नहीं कर सकती।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षण को अहम मानती है, इसीलिए उसने चार साल की बीएड डिग्री की सिफारिश की है। लेकिन भारत की समस्या गवर्नेंस की है। रिश्वत देकर अयोग्य लोग शिक्षक बन गए हैं। जब तक राज्य सरकारें इस समस्या का हल नहीं करतीं, तब तक कोई भी अच्छी नीति भारतीय बच्चे का भविष्य संवारने में मदद नहीं कर सकती।
21वीं सदी ज्ञान की सदी है। नालंदा और तक्षशिला के प्राचीन गौरव को पुन: स्थापित करना हमारा लक्ष्य है। हमारा राष्ट्र पुन: एक ज्ञान शक्ति का उकृष्ट केंद्र बने, इसके लिए शिक्षा नीति के स्वरूप को समकालिक बनाने का प्रयास किया गया है। साक्षरता के साथ कौशल का समावेश करने का प्रावधान कक्षा छह से ही किया गया है। गांधी जी का मानना था कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। इसी विचार को समाहित करते हुए तीन भाषा का फॉर्मूला दिया गया। छात्र कोई भी भाषा चुन सके, इसके लिए विकल्प खुले रखे गए हैं। कोई भाषा न थोपी जाए, इसे भी सुनिश्चित किया गया है। शिक्षा केवल शिक्षित ही नहीं करती, अपितु राष्ट्र का निर्माण भी करती है। वह ऐसे चरित्र का निर्माण करती है, जो जीवन मूल्यों पर टिका हो, देश को सर्मिपत हो और मानवता एवं वैश्विक सोच से परिपूर्ण हो। राष्ट्रभक्त ही नहीं, वैश्विक नागरिक तैयार करने की परिकल्पना को सामने रखकर ही हमने शिक्षा नीति का स्वरूप तैयार किया है। स्टडी इन इंडिया एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने के लिए दुनिया के सौ शीर्ष संस्थानों के लिए रास्ते खोले गए हैं, जिन्हें क्रमबद्ध और नियंत्रित तरीके से अमल में लाया जाएगा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति एकमात्र ऐसी नीति है, जिसमें पंचायत से लेकर संसद तक, ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक, छात्र से लेकर अभिभावक तक, शिक्षक से लेकर शिक्षाविदों तक और गरीब से लेकर उद्योगपतियों तक, सभी का विमर्श, सहयोग और योगदान है। यह पूर्ण रूप से एक ऐसी समावेशी शिक्षा नीति है, जिसे दुनिया के विशालतम विचारविमर्श, मंथन और चिंतन के उपरांत अपना स्वरूप प्राप्त हुआ। यह शिक्षा नीति 135 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं, उम्मीदों और भावनाओं को अपने अंदर समेटे स्वर्णिम भारत का स्वप्न लिए एक विजन डॉक्यूमेंट है। नई शिक्षा नीति आने वाले समय में एक ऐसा मानव संसाधन तैयार करेगी, जो राष्ट्र निर्माण में निर्णायक भूमिका अदा करेगा। जब प्राकृतिक संसाधन सीमित हों और वे सिकुड़ते भी नजर आएं, तो मानव संसाधन में निवेश करना चाहिए। शिक्षा में निवेश एक ऐसा प्रयोग है, जिसका लाभ हमें पीढ़ी-दर- पीढ़ी मिलता रहता है। इसी सोच को सामने रखकर हमने छह प्रतिशत जीडीपी का प्रावधान रखा है, ताकि उत्तम और गुणवत्तापूर्ण समावेशी शिक्षा सुनिश्चित हो सके। प्रधानमंत्री के सहयोगात्मक संघवाद की आधारशिला पर सभी प्रदेशों को साथ लेकर इस नीति का क्रियान्वयन क्रमबद्ध एवं समयबद्ध रूप में किया जाएगा।