india northeast zone map

North east issue (naga treaty)

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नगालैंड के राज्यपाल आर एन रवि को जरूर बुरा लग रहा होगा। उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके रवि ने नगालैंड में सक्रिय उग्रवादी संगठनों को समझौता प्रारूप पर सहमत करने के लिए पांच साल लगाए हैं। इस समझौते पर भारत सरकार और नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड- आइजक मुइवा गुट (एनएससीएन-आईएम) ने हस्ताक्षर किए थे। अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद रवि का जिक्र गृह मंत्रालय में महज संदर्भ के रूप में किया गया है। मंत्रालय की एक फाइल में वाई डी गुंडेविया (पूर्व विदेश सचिव), एल पी सिंह (पूर्व गृह सचिव), के पद्मनाभैया (पूर्व गृह सचिव) और आर एस पांडेय (नगालैंड के पूर्व मुख्य सचिव) के साथ रवि का भी नाम लिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनएससीएन-आईएम के प्रमुख थुइंगलेंग मुइवा ने वर्ष 2015 में नगा पहचान एवं संप्रभुता के मुद्दे का समाधान करने वाले प्रारूप समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इससे देश में उग्रवाद के सबसे पुराने गढ़ में शांति स्थापना की उम्मीदें जगी थीं। हालांकि इस समझौते के ब्योरे के बारे में संसद तक को जानकारी नहीं दी गई।

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आज पांच साल बाद एनएससीएन-आईएम नगा वार्ताकार के रूप में रवि की जगह किसी और को लाने की मांग कर रहा है। उसने आरोप लगाया है कि रवि ने उसे उगाही करने वाला और ठग संगठन बताकर छवि खराब करने की कोशिश की है। दूसरी तरफ रवि ने एक आदेश जारी कर सभी सरकारी कर्मचारियों से यह घोषणा करने को कहा है कि उनके किसी भी रिश्तेदार का एनएससीएन-आईएम या दूसरे उग्रवादी संगठन से कोई नाता नहीं है। दरअसल दोनों पक्षों के बीच विश्वास की खाई गहरी एवं चौड़ी हो चुकी है। ऐसा लगता है कि एनएससीएन-आईएम की जीत होने वाली है क्योंकि रवि को वार्ताकार के दायित्व से मुक्त करने की अटकलें चलने लगी हैं।

आखिर ऐसी स्थिति कैसे आ गई? रवि ने 17 अगस्त, 2019 को कहा था कि प्रधानमंत्री ने उनसे प्रारूप समझौते पर चल रही वार्ता तीन महीने में पूरा करने को कहा है। उन्होंने कहा था, ‘पिछले पांच वर्षों में हमने सभी अहम मुद्दों का सुविधाजनक समाधान निकाल लिया है।’ लेकिन इस आश्वस्तकारी माहौल के पीछे एक बेचैनी भी थी। प्रधानमंत्री के व्यग्र होने के अलावा बातचीत की मियाद तय कर दी गई थी और रवि पर एनएससीएन को हस्ताक्षर के लिए राजी कराने का दबाव भी था। उन्होंने सोचा कि मामला लगभग निपट चुका है। आखिर इस करार के तहत एनएससीएन नगा संप्रभुता का मुद्दा छोडऩे के अलावा भारतीय संघ के भीतर समाधान के लिए भी राजी दिख रहा था। लेकिन मामला कहीं अधिक जटिल था। सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को हासिल विशेष दर्जे को खत्म कर दिया। इस कदम से पूर्वोत्तर के राज्य भी अनुच्छेद 371 के तहत मिले संवैधानिक संरक्षण बरकरार रहने को लेकर आशंकित हो गए। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बयान देकर पूर्वोत्तर राज्यों को आश्वस्त करने की कोशिश की लेकिन यह नाकाफी साबित हुआ। एनएससीएन-आईएम ने भी प्रारूप समझौते के प्रावधानों पर नए सिरे से गौर करना शुरू कर दिया। आखिर वह नगा लोगों के लिए जिस अलग संविधान एवं झंडे की मांग करता रहा है जम्मू कश्मीर को उसी से वंचित किया गया था। रवि की अपनी मजबूरियां थीं। उन्हें अक्टूबर 2019 तक एक समझौता हासिल करना था। लेकिन यह तभी हो सकता था जब एनएससीएन-आईएम के पास हस्ताक्षर के अलावा कोई चारा ही नहीं बचे। ऐसी स्थिति में रवि ने पुरानी तरकीब अपनाते हुए विरोधी धड़ों को अलग बैनर एनएनपीजी के तहत ला खड़ा किया। इस समूह ने प्रारूप समझौते का समर्थन करने के अलावा उस पर दस्तखत करने की हामी भी भरी। रवि को उम्मीद थी कि अलग-थलग पडऩे के दबाव में एनएससीएन वार्ता के लिए तैयार हो जाएगा।

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लेकिन एनएससीएन-आईएम को अहसास हो गया कि सरकार उसे कमतर करने की कोशिश कर रही है लिहाजा उसने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसके मुखिया मुइवा ने फरवरी में नॉर्थ ईस्ट लाइव को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि पुराने मसले अभी तक सुलझाए नहीं जा सके हैं। सभी नगाओं के लिए अलग नगालिम की स्थापना, एक सरकार, अपना झंडा और संविधान जैसी मांगों पर वह अड़े थे। इस पर रवि ने कहा कि इसकी पेशकश ही नहीं की गई है। रवि ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘वार्ता संपन्न करने में हो रही देरी के लिए पूरी तरह एनएससीएन-आईएम जिम्मेदार है। वह समाधान के लिए तैयार नहीं दिखता है और पहले से सहमत बिंदुओं की अलग व्याख्या कर देर करने की तरकीब अपना रहा है। एक सांस्कृतिक इकाई का गठन कर नगा पहचान कायम रखने पर सहमति बनी थी लेकिन अब वह इसे राजनीतिक एवं कार्यकारी भूमिका भी देने की बात कर रहा है।’ हाल ही में एनएससीएन-आईएम ने ‘वार्ताकार के रूप में रवि की कारगुजारियां’ शीर्षक से एक पुलिंदा जारी किया है। इसमें संसद की स्थायी समिति को रवि की तरफ से पेश रिपोर्ट में नगा मसले का समाधान भारत के भीतर तलाशने की बात करने के लिए उन पर हमले बोले गए हैं। राज्यपाल की तरफ से राज्य सरकार को लिखे गए पत्र में विद्रोही संगठनों को ‘सशस्त्र समूह’ बताए जाने पर भी एतराज जताया गया। उसका कहना है कि रवि ने इन संगठनों पर समानांतर सरकार चलाने के आरोप भी लगाए हैं। ऐसी स्थिति में एनएससीएन-आईएम ने अपनी नाराजगी को खुलकर जाहिर करते हुए कहा कि अब वह रवि को वार्ताकार के तौर पर नहीं देखना चाहता है। सरकार ने भी मौके की नजाकत को समझा है और हाल ही में इस मसले पर दिल्ली में हुई बैठक में रवि नदारद रहे। प्रत्यक्ष रूप में देखें तो एनएससीएन-आईएम को मांगी हुई चीज मिल गई है। इस तरह उसने अपने विरोधियों को अपनी ताकत का अहसास भी करा दिया है। अगला कदम रवि को उठाना है। यह समय महत्त्वपूर्ण होने के साथ संवेदनशील भी है। अगर घटते जनसमर्थन के बावजूद एनएससीएन- आईएम फिर से हथियार उठाता है तो उसे फिर से बातचीत की मेज पर लाया जा सकता है।

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