
Painting of jharkhand
Painting of jharkhand झारखंड की पेंटिंग| janjati painting| adivasi painting| jharkhand Art| jharkhand ki chitrakala

पाटकर पेंटिंग
झारखंड की विरासत पाटकर पेंटिंग को बचाने के लिए राज सरकार ने पूर्वी सिंहभूम के धालभूमगढ़ प्रखंड आमाडुबी गांव को पर्यटन गांव ( टूरिस्ट विलेज) घोषित कर रखा है।
=> लेकिन यह पेंटिंग लुप्त होने के कगार पर है।
=> इस गांव के अनिल चित्रकार पाटकर पेंटिंग को देश विदेश में पहचान दिलाई । कलाप्रेमियों ने गांव आकर पेंटिंग को सराहा और खरीदा भी।
=> अनिल चित्रकार कहते हैं कि पाटकर पेंटिंग पेड़ की और पत्तों के रंग से बनाई जाती है, ब्रश भी हाथों से बनाया जाता है।
=> इस पेंटिंग की ब्रडिंग भी ठीक से राज्य सरकार ने नहीं की है।
=> इस पेंटिंग में रंगों के माध्यम से किसी घटना या कहानी का चित्रण किया जाता है इसे बनाने वाले एक खास जाति से आते हैं जिन्हें चित्रकार कहते हैं।
=> झारखंड पर्यटन निगम की ओर से इस गांव को विकसित किया जा रहा है ।
जमशेदपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर आमाडुबी गांव है।

जादोपाटिया चित्र कला शैली (TRIBAL PAINTING)
( PAINTER NAME:-DR.R K NIRAD)

इसमें मूलता: संथाल जनजाति के समाज के सांस्कृतिक मूल्य, परंपराओं और मित्रों को खास शैली का प्रयोग होता है और गतिशील रेखाएं इस्तेमाल की जाती हैं। कागज या कपड़े के लंबवत एक पट पर किसी विषय विभिन्न प्रसंगों को उकेरा जाता है। कलाकार इस पट को दिखाते समय चित्रित विषय को गाकर बताता है। इस प्रकार या दृश्य और प्रदर्शन दोनों कला रूपों से संबंध है, जादोपटिया शैली के चित्रकार को संथाली भाषा में जादो कहते हैं।यह संथाल जनजाति की सर्वाधिक मशहूर लोग चित्रकला शैली है।
सोहराय –TRIBAL -PAINTING
इसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है, इस पेंटिंग में पेंटिंग, जंगली जीव जंतुओं, पक्षी और पेड़ -पौधों को उकेरा जाता है ।
=> इन चित्रों में जनजातीय समाज अपने जानवरों के चित्र बनाते हैं।
=> इसमें कपड़े पर चित्रकला शैली में ‘J ‘ के मूलत: संथाल ,मुंडा, & उरावं, सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं को चित्रित किया जाता है।
=> वरिष्ठ कलाकार–> दिलेश्वर लोहरा( FAMOUS ARTIST:-Mrs. PARWATI DEVI (CHARHI HAZARIBAG)

=> यह एक प्राचीन चित्रकला है, यह प्रसिद्ध पर्व सोहराय से भी जुड़ी है, सोहराय पर्व दीपावली के 1 दिन बात मनाया जाता है।
=> सोहराई पेंटिंग :– वर्षा ऋतु के बाद लड़की लिपाई पुताई से शुरू होती है, इस पेंटिंग में कला का देवता प्रजापति या पशुपति का। पशुपति को सांड की पीठ पर खड़ा चित्रित किया जाता है। उसका शरीर डमरु की आकृति का होता है।
=> चित्रण शैली के लिहाज से सोहराय की दो अलग-अलग शैलियां है:–
1:– कुर्मी सोहराय
2::–मंझू सोहराय