
भारत दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त बाजार वाला लोकतंत्र है, यह सभी के लिए खुला है। अपनी विशाल आबादी के साथ भारत सबसे बड़ा खुला डिजिटल बाजार बन गया है। यहां करोड़ों लोग डिजिटल बाजार में सक्रिय ग्राहक हैं। एरिक्सन की मोबिलिटी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में औसत डाटा खपत वर्ष 2025 तक प्रति माह प्रति उपभोक्ता 25 जीबी तक पहुंचने की संभावना है। इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल फोन के मार्फत होगा। भारत में प्रति उपभोक्ता डाटा खपत दुनिया में हो रही खपत से ज्यादा है। भारत में वर्ष 2025 तक 41 करोड़ से अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं के जुड़ने की संभावना है।

ज्यादा डाटा उपयोग का मतलब है, भारतीय लोग डिजिटल गतिविधियों पर ज्यादा समय और पैसा खर्च करते हैं, सोशल मीडिया से खरीदारी तक। ऐसा देश विशालकाय ग्लोबल डिजिटल कंपनियों – गूगल, अमेजन, ट्विटर, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक के लिए आदर्श बाजार है। यह भी याद रखें कि इनमें से अधिकांश कंपनियों को चीन में मंजूरी नहीं है। चीन सरकार ने मानो दीवार बना रखी है, जो इन कंपनियों को चीनी उपभोक्ताओं तक पहुंचने से रोकती है। इसलिए भी इन कंपनियों को भारत पर विशेष ध्यान देना चाहिए। हालांकि, इनका कारोबार बहुत अपारदर्शी है। ये कंपनियां भारत में खूब कमाई करती हैं, फेसबुक और गूगल ने 2018-19 में भारत से कम से कम 1.6 अरब डॉलर की कमाई की है। कमाई लगातार बढ़ रही है। अमेजन की भारत से कमाई 1.9 अरब डॉलर आंकी गई है।
गौर करना चाहिए कि ये दिग्गज कंपनियां भारत में कैसा व्यवहार करती हैं। कई बार लगता है, वे यहां कर भुगतान भी नहीं करना चाहती हैं। वे भारत की संप्रभुता का सम्मान नहीं करना चाहती हैं। वे भारत में प्रतिस्पद्र्धा को कुचल देती हैं। वे अत्यधिक शुल्क की मांग करती हैं। वे भारत में डाटा गोपनीयता का सम्मान नहीं करती हैं।

अभी पिछले दिनों यह खबर चर्चा में रही कि डाटा गोपनीयता कानून पर विचार कर रही संसदीय समिति के साथ अमेजन सहयोग नहीं कर रही है। ट्विटर को लेकर भी चर्चा थी, वह जम्मू-कश्मीर को चीन के हिस्से के रूप में दिखा रहा था। जब उससे पूछताछ की गई, तो उसने माफी नहीं मांगी, सिर्फ तकनीकी खामी का हवाला दिया। जब ट्विटर को चीन में मंजूरी भी नहीं है, तब भी उसे भारत की तुलना में चीन से अधिक डर लगता है?
गूगल अपने प्ले स्टोर पर भारतीय एप के राजस्व का 30 प्रतिशत हिस्सा लेना चाहता है, इससे घरेलू स्तर पर एप्स का लाभ न केवल घट जाता है, बल्कि उनका विकास भी बाधित होता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो इन कंपनियों की मनमानी की ओर इशारा करते हैं, उनकी साम्राज्यवादी मानसिकता को भी दर्शाते हैं। कोई शक नहीं, यहां इन कंपनियों को ऐसा करने की अनुमति दी गई है। अब अमेजन पर संसदीय समिति द्वारा प्रदर्शित रोष बदलाव का अच्छा संकेत है। उधर, प्रतिस्पद्र्धा आयोग में गूगल के खिलाफ मामला चल रहा है। कुछ चीजों को सेंसर करने और कुछ राजनीतिक विचारों को बढ़ावा देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से खिलवाड़ के लिए ट्विटर और फेसबुक से पूछताछ जारी है।

यह समय है, भारत गलत व्यवहार कर रही कंपनियों पर निगाह रखे। उन्हें एक साधारण तथ्य को समझना चाहिए कि भारत को उनकी नहीं, उन्हें भारत की जरूरत है। वे भारत में कुछ हजार लोगों को नौकरी पर रख लें और उम्मीद करें कि बाकी 1.3 अरब भारतीय उनके आभारी हो जाएं, ऐसा नहीं हो सकता। अगर भारत भी चीन की तरह व्यवहार करने लगा और बड़ी कंपनियों की भारत में पहुंच को रोकने लगा, तो ये कंपनियां मुश्किल में पड़ जाएंगी। भारत को इन दिग्गजों को अपना व्यवहार बदलने के लिए मजबूर करना होगा। भारत ताकत के साथ ऐसा कर सकता है, कमजोरी के साथ नहीं।
कुछ भारतीय कंपनियों ने पहले ही प्ले स्टोर और एप्पल स्टोर का विकल्प तैयार करने के लिए सरकार से संपर्क किया है। चंद विदेश आधारित कंपनियों के एकाधिकार को मजबूत करते जाने के बजाय भारतीय विकल्पों को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि भारतीय कंपनियों को ज्यादा लाभ हो। भारतीय बाजार में सभी को कारोबार का हक है, लेकिन भारत के घरेलू उद्योगों, समाज और नीति निर्माताओं को वैश्विक कंपनियों को वश में रखना चाहिए। यदि वे भारत में पनपना चाहती हैं, तो उन्हें हमारे नियमों का पालन करना चाहिए। यहां तक कि इन दिनों अमेरिका सरकार भी प्रतिस्पद्र्धा-विरोधी व्यवहार को रोकने के लिए इन्हें मजबूर कर रही है। विडंबना है, अमेरिकी सरकार और उसके एंटी-ट्रस्ट कानूनों ने ही दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट पर दबाव डाला था और कंप्यूटर पर गूगल सर्च इंजन लोड करने की शुरुआत हुई थी।

सिर्फ सिलिकॉन वैली या यूरोपीय कंपनियों से नहीं, भारत को चीन के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए। चीनी एप पर लगे प्रतिबंध को नाकाम करने के लिए लगातार कोशिशें की जा रही हैं। चीनी एप भारतीय उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए अपना नाम और ब्रांड बदलने की कोशिश में हैं। सेंटर फॉर डिजिटल इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को इस तरह के एक मामले की खोज करके सतर्क किया है। मंत्रालय ने कुछ हफ्तेपहले चीन के क्वाइ एप पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन क्वाइ ने स्नैक वीडियो के रूप में खुद को रीब्रांड कर लिया और भारत में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है। सरकार को जांच करनी चाहिए।
यह भारत के लिए एक बड़े महत्वपूर्ण बाजार के रूप में व्यवहार करने का समय है। वैश्विक कंपनियों को भारतीय बाजार की जरूरतों को सुनना होगा और भारत के नियम-कायदों की पालना करनी पड़ेगी। मनमानी करने वाली कंपनियों को हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती। भारत को उचित सीमा और नियम लागू करने में हिचकना नहीं चाहिए।
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