IAS REFORM |UPSC Reform in India

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UPSC Reform in India

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफसरशाहों पर बेहद कड़ी टिप्पणी की है। उनकी हताशा समझी जा सकती है। आखिरकार केंद्र और राज्यों दोनों जगहों पर सरकारों का संचालन पिछले 70 वर्षों से ये एमेच्योर अधिकारी ही करते रहे हैं। यह कुछ वैसा ही है मानो केबिन क्रू ही विमान को उड़ा रहे हैं।

बीते 41 वर्षों में मैंने कई बार इस मसले पर लिखा है जिसकी एक बहुत सामान्य वजह है। एक समय मेरे पिता को छोड़कर आठ चाचा एवं चचेरे भाई-बहिन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का हिस्सा थे। इसके अलावा कॉलेज के करीब दर्जन भर दोस्त भी आईएएस अफसर थे। कुछ अन्य सेवाओं में भी बहुत सारे परिचित लोग तैनात थे। इस तरह अफसरशाही को मुझे बहुत करीब से जानने-समझने को मिला है।

आईएएस अफसर के रूप में तैनात ये सभी लोग अच्छे स्वभाव एवं अच्छी नीयत वाले थे। लेकिन देश की जरूरत को देखते हुए वे लोग बहुत ज्यादा परिष्कृत हो चुके हैं और अब पानी पर लाठियां भांजने में ही लगे हैं।

समस्या हमेशा से यही रही है। सबको पता है कि भारत के लिए यह सेवा काफी अहम है लेकिन अपने मौजूदा अवतार में नहीं। इस रूप में वह अपना मकसद खो चुकी है। यही वजह है कि समूची अफसरशाही और खासकर आईएएस में व्यापक सुधारों की सख्त जरूरत है। अब हरफनमौला अफसरों का दौर बीत चुका है। शासन चलाना कोई टी-20 मैच नहीं है।

इस लिहाज से प्रधानमंत्री के लिए मेरे पास एक सुझाव है। उन्हें आईएएस सेवा को तीन हिस्सों में बांट देना चाहिए। इस तरह आईएएस के तीन वर्टिकल हो जाएंगे। मेरा मानना है कि इससे भविष्य की जरूरतें पूरी हो सकेंगी।

सबसे बड़े वर्टिकल को जिलों का संचालन करना चाहिए क्योंकि यह सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है जो सिर्फ आईएएस एवं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अफसर ही अंजाम दे सकते हैं। वास्तव में इन दोनों सेवाओं को मूल रूप में इसीलिए बनाया गया था। हमारे कानून उन्हें इसकी पूरी ताकत देते हैं।

दूसरा वर्टिकल अपेक्षाकृत छोटा होगा जिसमें विशेषज्ञों को तवज्जो दी जाए। अफसरों को सेवा को दसवें साल में एक क्षेत्र चुनने को कहा जाए और वे आगे उसी क्षेत्र में काम करते रहें। यह आईएएस सेवा का क्षेत्रवार वर्टिकल होगा। इस वर्टिकल की शिद्दत से जरूरत महसूस की जाती रही है क्योंकि मौजूदा समय के सामान्य दृष्टिकोण से काम नहीं चल पाएगा। अब उस रवैये से काम नहीं चल पाएगा कि कोई अफसर सेवा में काम करते हुए ही सीखता रहे। असल में सीखने के लिए बहुत कुछ है।

तीसरे एवं सबसे छोटे वर्टिकल को नीतिगत वर्टिकल कहा जाना चाहिए। अपने कैडर में 10 साल की सेवा पूरी करने के बाद अफसरों को पितृ सेवा में से चुना जाएगा।

आईएएस सेवा में 10 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरे और तीसरे वर्टिकल में जाने की मंशा रखने वाले अफसरों को एक परीक्षा से गुजरना होगा। इस परीक्षा में नीतिगत एवं विशेषज्ञ के लिहाज से जरूरी रवैये को परखा जाएगा क्योंकि हर कोई कार्यकारी दायित्वों के कारगर एवं सक्षम निर्वहन की न तो इच्छा रखता है और न ही उसकी काबिलियत ही रखता है।

इस परीक्षा में सफल होने वाले अधिकारियों को राज्यों की राजधानियों या केंद्र सरकार के मंत्रालयों में तैनात किया जाएगा। यह निजी पसंद का मामला होगा। वहां पर वे अधिकारी अगले 25 साल नीति-नियामक गतिविधियों में संलग्न रहेंगे और उनके चुने हुए क्षेत्र में उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता रहेगा। इस भूमिका में 25 साल बिताने के बाद उन्हें फिर से सामान्य पूल में जगह दे दी जाएगी ताकि वे बाकी अफसरों के साथ बराबरी की प्रतिस्पद्र्धा कर सकें।

वहीं परीक्षा में नहीं बैठने का फैसला करने वाले या फिर उसमें नाकाम हो जाने वाले बाकी अफसर पहले की ही तरह कार्यकारी दायित्वों को निभाते रहेंगे। दोनों ही सूरत में अफसरों का संबंधित क्षेत्र का अनुभव अपने-आप बढ़ेगा जो फायदेमंद ही साबित होगा।

कुछ लोगों को ही याद है कि वर्ष 1953 में जवाहरलाल नेहरू ने औद्योगिक प्रबंधन पूल नाम की एक सेवा शुरू की थी। आईएएस के पूर्व रूप भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) के अफसरों ने आखिरकार उसे नाकाम बना दिया। वे चाहते थे कि सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम प्रमुख पद उनके लिए ही आरक्षित रहें। बीएचईएल एवं सेल के पूर्व चेयरमैन वी कृष्णमूर्ति जैसे ताकतवर शख्स भी आईएएस की ताकतवर लॉबी को पूरी तरह तोड़ पाने में नाकाम रहे।

हालांकि अगर आईएएस को तीन हिस्सों में बांट दिया जाता है तब भी हमें यह तय करना ही होगा कि किस काम को अभी करना जरूरी है और किस काम को अगले 15 साल में अंजाम देना होगा?

इसका जवाब एकदम सरल है। इस समय लागू रोटेशन की नीति पर फौरन लगाम लगानी होगी और उसी के साथ राज्य स्तर पर विशेषज्ञता का प्रावधान भी करना होगा।

इस काम को करना बहुत जरूरी है। फिलहाल बेहतर काम करने वाले अफसर अपने कैडर को छोड़कर प्रतिनियुक्ति पर चले जाते हैं जिससे राज्यों में क्षमतावान एवं उत्साही अफसरों की भारी कमी हो जाती है।

संक्षेप में, आईएएस अफसरों को नियुक्त करो, उनकी मनोदशा परखो, बाकियों से अलग करो, प्रशिक्षण दो और उन्हें अपने साथ बनाए रखो। साथियों को साथ छोड़कर नहीं जाने देना है।

आखिर में, मैं पिछले 25 वर्षों से यह कहता आ रहा हूं कि हमें संविधान का अनुच्छेद 311 संशोधित करना चाहिए जो सभी सरकारी कर्मचारियों को पद से हटाए जाने के खिलाफ संरक्षण देता है। फिलहाल किसी भी सरकारी कर्मचारी को पागलपन, शराबखोरी एवं कदाचार के ही आरोप में नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है। जब मैं सक्षमता का सवाल उठाता हूं तो उनका यही जवाब होता है कि क्या आप नशे में धुत, पागल या पथभ्रष्ट हो?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफसरशाहों पर बेहद कड़ी टिप्पणी की है। उनकी हताशा समझी जा सकती है। आखिरकार केंद्र और राज्यों दोनों जगहों पर सरकारों का संचालन पिछले 70 वर्षों से ये एमेच्योर अधिकारी ही करते रहे हैं। यह कुछ वैसा ही है मानो केबिन क्रू ही विमान को उड़ा रहे हैं।

बीते 41 वर्षों में मैंने कई बार इस मसले पर लिखा है जिसकी एक बहुत सामान्य वजह है। एक समय मेरे पिता को छोड़कर आठ चाचा एवं चचेरे भाई-बहिन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का हिस्सा थे। इसके अलावा कॉलेज के करीब दर्जन भर दोस्त भी आईएएस अफसर थे। कुछ अन्य सेवाओं में भी बहुत सारे परिचित लोग तैनात थे। इस तरह अफसरशाही को मुझे बहुत करीब से जानने-समझने को मिला है।

आईएएस अफसर के रूप में तैनात ये सभी लोग अच्छे स्वभाव एवं अच्छी नीयत वाले थे। लेकिन देश की जरूरत को देखते हुए वे लोग बहुत ज्यादा परिष्कृत हो चुके हैं और अब पानी पर लाठियां भांजने में ही लगे हैं।

समस्या हमेशा से यही रही है। सबको पता है कि भारत के लिए यह सेवा काफी अहम है लेकिन अपने मौजूदा अवतार में नहीं। इस रूप में वह अपना मकसद खो चुकी है। यही वजह है कि समूची अफसरशाही और खासकर आईएएस में व्यापक सुधारों की सख्त जरूरत है। अब हरफनमौला अफसरों का दौर बीत चुका है। शासन चलाना कोई टी-20 मैच नहीं है।

इस लिहाज से प्रधानमंत्री के लिए मेरे पास एक सुझाव है। उन्हें आईएएस सेवा को तीन हिस्सों में बांट देना चाहिए। इस तरह आईएएस के तीन वर्टिकल हो जाएंगे। मेरा मानना है कि इससे भविष्य की जरूरतें पूरी हो सकेंगी।

सबसे बड़े वर्टिकल को जिलों का संचालन करना चाहिए क्योंकि यह सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है जो सिर्फ आईएएस एवं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अफसर ही अंजाम दे सकते हैं। वास्तव में इन दोनों सेवाओं को मूल रूप में इसीलिए बनाया गया था। हमारे कानून उन्हें इसकी पूरी ताकत देते हैं।

दूसरा वर्टिकल अपेक्षाकृत छोटा होगा जिसमें विशेषज्ञों को तवज्जो दी जाए। अफसरों को सेवा को दसवें साल में एक क्षेत्र चुनने को कहा जाए और वे आगे उसी क्षेत्र में काम करते रहें। यह आईएएस सेवा का क्षेत्रवार वर्टिकल होगा। इस वर्टिकल की शिद्दत से जरूरत महसूस की जाती रही है क्योंकि मौजूदा समय के सामान्य दृष्टिकोण से काम नहीं चल पाएगा। अब उस रवैये से काम नहीं चल पाएगा कि कोई अफसर सेवा में काम करते हुए ही सीखता रहे। असल में सीखने के लिए बहुत कुछ है।

तीसरे एवं सबसे छोटे वर्टिकल को नीतिगत वर्टिकल कहा जाना चाहिए। अपने कैडर में 10 साल की सेवा पूरी करने के बाद अफसरों को पितृ सेवा में से चुना जाएगा।

आईएएस सेवा में 10 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरे और तीसरे वर्टिकल में जाने की मंशा रखने वाले अफसरों को एक परीक्षा से गुजरना होगा। इस परीक्षा में नीतिगत एवं विशेषज्ञ के लिहाज से जरूरी रवैये को परखा जाएगा क्योंकि हर कोई कार्यकारी दायित्वों के कारगर एवं सक्षम निर्वहन की न तो इच्छा रखता है और न ही उसकी काबिलियत ही रखता है।

इस परीक्षा में सफल होने वाले अधिकारियों को राज्यों की राजधानियों या केंद्र सरकार के मंत्रालयों में तैनात किया जाएगा। यह निजी पसंद का मामला होगा। वहां पर वे अधिकारी अगले 25 साल नीति-नियामक गतिविधियों में संलग्न रहेंगे और उनके चुने हुए क्षेत्र में उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता रहेगा। इस भूमिका में 25 साल बिताने के बाद उन्हें फिर से सामान्य पूल में जगह दे दी जाएगी ताकि वे बाकी अफसरों के साथ बराबरी की प्रतिस्पद्र्धा कर सकें।

वहीं परीक्षा में नहीं बैठने का फैसला करने वाले या फिर उसमें नाकाम हो जाने वाले बाकी अफसर पहले की ही तरह कार्यकारी दायित्वों को निभाते रहेंगे। दोनों ही सूरत में अफसरों का संबंधित क्षेत्र का अनुभव अपने-आप बढ़ेगा जो फायदेमंद ही साबित होगा।

कुछ लोगों को ही याद है कि वर्ष 1953 में जवाहरलाल नेहरू ने औद्योगिक प्रबंधन पूल नाम की एक सेवा शुरू की थी। आईएएस के पूर्व रूप भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) के अफसरों ने आखिरकार उसे नाकाम बना दिया। वे चाहते थे कि सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम प्रमुख पद उनके लिए ही आरक्षित रहें। बीएचईएल एवं सेल के पूर्व चेयरमैन वी कृष्णमूर्ति जैसे ताकतवर शख्स भी आईएएस की ताकतवर लॉबी को पूरी तरह तोड़ पाने में नाकाम रहे।

हालांकि अगर आईएएस को तीन हिस्सों में बांट दिया जाता है तब भी हमें यह तय करना ही होगा कि किस काम को अभी करना जरूरी है और किस काम को अगले 15 साल में अंजाम देना होगा?

इसका जवाब एकदम सरल है। इस समय लागू रोटेशन की नीति पर फौरन लगाम लगानी होगी और उसी के साथ राज्य स्तर पर विशेषज्ञता का प्रावधान भी करना होगा।

इस काम को करना बहुत जरूरी है। फिलहाल बेहतर काम करने वाले अफसर अपने कैडर को छोड़कर प्रतिनियुक्ति पर चले जाते हैं जिससे राज्यों में क्षमतावान एवं उत्साही अफसरों की भारी कमी हो जाती है।

संक्षेप में, आईएएस अफसरों को नियुक्त करो, उनकी मनोदशा परखो, बाकियों से अलग करो, प्रशिक्षण दो और उन्हें अपने साथ बनाए रखो। साथियों को साथ छोड़कर नहीं जाने देना है।

आखिर में, मैं पिछले 25 वर्षों से यह कहता आ रहा हूं कि हमें संविधान का अनुच्छेद 311 संशोधित करना चाहिए जो सभी सरकारी कर्मचारियों को पद से हटाए जाने के खिलाफ संरक्षण देता है। फिलहाल किसी भी सरकारी कर्मचारी को पागलपन, शराबखोरी एवं कदाचार के ही आरोप में नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है। जब मैं सक्षमता का सवाल उठाता हूं तो उनका यही जवाब होता है कि क्या आप नशे में धुत, पागल या पथभ्रष्ट हो?


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