झारखंड का इतिहास | History of Jharkhand

(   ऐतिहासिक पृष्ठभूमि झारखंड के प्रमुख विद्रोह एवं आंदोलन और विभिन्न शासन व्यवस्थाएं   )

झारखंड का इतिहास एवं संस्कृति के प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक गौरवशाली परंपरा रही है। झारखंड का इतिहास एवं संस्कृति के निर्माण में जनजाति समाज का अमूल्य योगदान रहा है। यहां के संस्कृति को जानने एवं समझने के लिए प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक मानव संस्कृति एवं सभ्यता के उद्भभव तथा विकास से संबंधित ऐतिहासिक स्रोतों की बहुलता पाई जाती है। इससे संबंधित पुरातात्विक और साहित्यिक दोनों प्रकार के साक्ष्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

झारखंड के ऐतिहासिक स्रोत

संस्कृति को समझने के लिए पुरातात्विक एवं साहित्यिक दोनों प्रकार के स्रोत उपलब्ध है । झारखंड की जनसंख्या में विश्व की सभी प्रमुख मानव जनजातियां यथा निग्रायड ,मंगोलॉयड , कॉकेसाइड , प्रोटो – ऑस्ट्रेलायड के शारीरिक लक्षण पाए गए हैं ,तथापि जनजातीय जनसंख्या में प्रोटो ऑस्ट्रेलायड की प्रधानता है ।जो कि झारखंड जनजातियों की संस्कृति के उद्भव एवं विकास का कीड़ा स्थल रहा है ,इसलिए झारखंड के इतिहास को जानने समझने के लिए पुरातात्विक एवं साहित्यिक स्रोत के साथ-साथ जनजातियों की पारंपरिक वंशावली ,लोक कथाएं ,अनुश्रुतियाँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।इस प्रकार प्राथमिक और द्वितीयक स्रोत दोनों असंख्य मात्रा में उपलब्ध है।

झारखंड के पुरातात्विक स्रोत

पुरातात्विक स्रोत का प्राचीनतम साक्ष्य झारखंड क्षेत्र से आज से लगभग 100000 ई . पूर्व के पुरापाषाणकालीन ( Paleolithic ) पत्थर के उपकरण के रूप में प्राप्त हुए हैं।पुरापाषाणकालीन पाषाण उपकरण बोकारो से हस्तकुठार तथा हजारीबाग के इस्को, सरैया, रहम , देहोंगी के आदि से प्राप्त हुए हैं।

                          पाषाणकालीन उपकरणों से झारखंड में आदिमानव के रहने का प्रमाण मिलता है। 1991 ईस्वी में हजारीबाग के इस्को में किए गए उत्खनन से एक पाषाण पर चित्रकारी का नमूना मिला है ,जिससे 2 प्राकृतिक गुफाओं की जानकारी मिलती है। साथ ही इस्को से ही भूल-भुलैया वाली आकृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं हजारीबाग जिले के सतपहाड़ सरैया, रहम, देहोंगी तथा रामगढ़ जिले के गोला , कुसुमगढ़ ,बड़कागांव ,बांस नगर ,मांडू , करसो ,बरागुंडा, रजरप्पा आदि स्थलों से कुल्हाड़ी ,खुरसानी ,बेँधक, तक्षणी आदि उपकरण प्राप्त हुए हैं।पलामू जिले के शाहपुर ,रंका कला ,बजना ,झावर ,नाक गढ़ पहाड़ी ,बालूगारा आदि से पाषाण कालीन कुल्हाड़ी स्क्रैपर ब्लेड आदि प्राप्त हुए हैं। गढ़वा जिला अंतर्गत भवनाथपुर के निकट प्रागैतिहासिक कालीन शौलचित्र एवं अनेक प्राकृतिक गुफाओं के प्रमाण मिले हैं । इन गुफाओं के आलेख एवं पशुओं के चित्र हैं। इन पशुओं में भैंसा , हिरण आदि को चित्रित किया गया है।

                                                                                                                          पश्चिम एवं पूर्वी सिंहभूम के चक्रधरपुर , बेबो, इसाडीह, बारूडीह , पूर्णापानी आदि स्थलों से पुरातात्विक उत्खनन से पुरापाषाण काल से नवपाषाण काल तक के क्रोड, शल्क, खंडक ,विदारणी , आदि पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं।बारूडीह मेँ संजय और सोनू-नाला नदी के संगम से नवपाषाण कालीन मृदभांड, मिट्टी के बर्तन के टुकड़े, पत्थर की हथौड़ी तथा डुगनी ,डोर ,नीमडीह और बोनगरा से नवपाषाण कालीन पत्थर के कुल्हाड़ी तथा काले रंग के मृदभांड प्राप्त हुए हैं हजारीबाग के दूध पानी से 1894 ईसवी में किए गए उत्खनन से आठवीं सदी के लेख प्राप्त हुए हैं।

दूधपानी के निकट स्थित डूमडूमा से 8 वीं एवं 12 वीं सदी में पाषाण कालीन मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के विस्तार को स्पष्ट करता है। चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड में मुगलकालीन कुंपा का किला स्थित है तथा चतरा जिले में ही हंटरगंज प्रखंड में कोलुआ पहाड़ी क्षेत्र से मध्यकालीन दुर्ग की चाहरदिवारी का साक्ष्य मिला है।कोलुआ पहाड़ जो कौलेश्वरी पहाड़ के नाम सभी प्रसिद्ध है , इस पर हिंदू देवी-देवताओं एवं जैन तीर्थंकरों तथा बुध की मूर्तियां स्थापित है । यह पहाड़ कौलेश्वरी पहाड़ के नाम से भी प्रसिद्ध है।कौलेश्वरी पहाड़ सिख धर्म का भी केंद्र रहा है तथा ऐसा माना जाता है, कि गुरु नानक इस स्थान पर ठहरे थे।

                                                                 पुरातात्विक स्रोत में पत्थर स्लेट के टुकड़े बुरहादी आदि से और रारू नदी के तट से जो चाईबासा में स्थित है से नवपाषाण कालीन पत्थर से निर्मित अनेक चाकू मिले हैं । एस. सी.राय को बुरुहातु से स्लेटी पत्थर की छेनी ,क्वार्ट्ज पत्थर के पोलीशदार छेनी तथा लोहे और तांबे की आरी प्राप्त हुई है ।चतरा जिला के गिद्धौर प्रखंड से मेगालिथ संस्कृति का प्रमाण प्राप्त हुआ है।

                                                                          पलामू के मूर्तियां नामक स्थल बौद्ध धर्म के अनेक अवशेष प्राप्त हुए हैं, जबकि करुआ (धनबाद) नामक ग्राम में बौद्ध स्तूप का प्रमाण पाया गया है। धनबाद जिले के ही बुद्धपूर एवं डाल्मी में भी अनेक बौद्ध स्मारक स्थित है बुद्धपुर की पहाड़ियों में बुद्धेश्वर मंदिर के भग्नावशेष स्थित हैं।अशोक के 13वें शिलालेख में आटविक जातियों का उल्लेख हुआ है, जो कि क्षेत्र में निवास करने वाली जनजातियां थी।

झारखंड के साहित्यिक स्रोत

भारत के इतिहास का प्रारंभिक साहित्यिक स्रोत वैदिक साहित्य में छोटानागपुर क्षेत्र के लिए किक्कट शब्द का प्रयोग हुआ है ।जबकि उत्तर वैदिक साहित्य में यह वात्य प्रदेश के रूप में वर्णित हुआ है। महाभारत के दिग्विजय पर्व में छोटा नागपुर क्षेत्र के लिए पुडरिक शब्द का वर्णन आया है। महाभारत में झारखंड क्षेत्र को पशु भूमि कहा गया है क्योंकि जंगल की बहुलता के कारण इस क्षेत्र में जंगली पशुओं की संख्या अधिक थी।

                    मध्यकालीन इतिहास लेखकों में अबुल फजल का अकबरनामा , शम्स-ऐ- सिराज अफीक की रचना तारीख-ए -फिरोजशाही तथा सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत प्रमुख स्रोत है।शम्स-ऐ- सिराज अफीक का मानना है, कि जंगल झाड़ की अधिकता के कारण इस क्षेत्र का नाम झारखंड पड़ा है। इसके अतिरिक्त जहांगीर की आत्मकथा तुजुक-ऐ-जहॉगिरी शाहबाज खान तथा अब्दुल की रचना माथिर-उल- उमरा तथा मिर्जा नाथन की रचना बहारिस्थान-ऐ-गैबो मैं भी झारखंड के नामकरण से लेकर सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी मिलती है। मध्यकालीन एवं अन्य इतिहासकारों सलीमुल्लाह और गुलाम हुसैन की रचनाओं में भी झारखंड क्षेत्र का विवरण मिलता है। कबीरदास की रचनाओं में झारखंड शब्द का उल्लेख एक पद में आया है।

                बोरमैन की पुस्तक ‘ द निरयोलिथिक पैटर्न इन द फ्री हिस्ट्री ऑफ इंडिया ‘ से नवपाषाणकालीन हस्तकुठारों के 12 प्रकारों की जानकारी मिलती है। डी. एन .मजूमदार की पुस्तक ‘ रेसेज एंड कल्चरस आफ इंडिया’ से चेरो ,खरवार, भूमिज, संथाल आदि जनजातियों के बारे में उनके झारखंड आगमन तथा सांस्कृतिक सामाजिक जीवन की जानकारी मिलती है ।

                              डाल्टन के पुस्तक ‘द कॉल ऑफ छोटानागपुर ‘ , अमरनाथ दास का ‘कथाकोष’ एल . टिकेल की पुस्तक ‘नोट्स ऑन ए टूर इन मानभूम’ तथा ‘इथनोलॉजी ऑफ बंगाल’ आदि पुस्तकों में जनजातिय इतिहास एवं संस्कृति का तथ्यात्मक विश्लेषण प्राप्त किया गया है ।

झारखंड के प्रमुख पाषाणकालीन स्थल

 पाषाण कालीन  अवस्था                   स्थान    प्राप्त साक्ष्य /उपकरण
 पुरापाषाण काल          (Paleolithic age)इस्को, सरैया रहम, देहोंगी ( सभी हजारीबाग ) झरिया,बोकारोपत्थर की कुल्हाड़ी एवं भाला, पत्थर के अनगढें उपकरण
 मध्य पाषाण काल           (Mesolithic age)भवनाथपुर ,झारवर ,नाकगढ़माइक्रोलिथ उपकरण
  नवपाषाण काल             (Neolithic age)बुरहादी, बुर्जू ,रोरो नदी (चाईबासा) , बुरूहातूपत्थर का सेल्ट, स्लेटी पत्थर का पॉलिशदार छेनी , प्रस्तर चाकू, स्लेट पत्थर की छेनी
 ताम्र पाषाण काल           (Chalcolithic age)दरगामा गांव , बसियातांबे का सेल्ट तथा तांबा एवं लोहे की आरी, तांबे की कुल्हाड़ी

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