झारखण्ड में मौर्य साम्राज्य

झारखण्ड में मौर्य साम्राज्य

अर्थशास्त्र के संरक्षक इतिहासकार और रामशास्त्री के अनुसार झारखंड क्षेत्र चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में शामिल था। परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र निवास करने वाली आटवीं जातियों पर अशोक का नियंत्रण स्थापित था। अशोक के 13वें शिलालेख में आटवीं के नाम का उल्लेख हुआ है। 

आर.डी. भंडारकर के अनुसार उड़ीसा के बघेलखंड (छत्तीसगढ़) के मध्य का क्षेत्र था, जिसके अंतर्गत ही झारखंड का क्षेत्र स्थित था। अशोक ने आटव जनजातियों में अपने धम्म के प्रचार के लिए रक्षित को भेजा था।

कौटिल्य ने अपनी रचना अर्थशास्त्र में झारखंड क्षेत्र के लिए कुकुर ( कुकुरदेश) शब्द का प्रयोग किया है। अर्थशास्त्र के अनुसार वनवासियों को नियंत्रित करने के लिए तथा मगध क्षेत्र को सुरक्षित रखने के आटविक नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई थी।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार मगध एवं मौर्य साम्राज्य तथा दक्षिण भारत का व्यापारिक मार्ग झारखंड क्षेत्र से ही होकर गुजरता था। अर्थशास्त्र में इंद्रवाहक नदी से हीरा प्राप्त होने की चर्चा है । इंद्रवाहक संभवत ईब एवं शंख नदी का घाटी क्षेत्र था। मौर्य काल में ही इस क्षेत्र से होकर महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग गुजरता था जो बंगाल के तट पर स्थित प्रमुख मौर्यकालीन बंदरगाह ताम्रलिप्ती को पाटलिपुत्र ,गया एवं वाराणसी से जोड़ता था। ताम्रलिप्ती से पाटलिपुत्र को जोड़ने वाले इस मार्ग पर झारखंड के रघुनाथपुर ,तेलकूपी ,झरिया आदि स्थल स्थित थे। अर्थशास्त्र में वर्णित मौर्यकालीन दक्षिणापथ मार्ग भी झारखंड से होकर गुजरता था ,जो उत्तर भारत को दक्षिण भारत एवं प्रतिष्ठान से जोड़ता था।

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