jharkhand mein prachin rajvansh,झारखण्ड के प्राचीन राजवंश , jharkhand ke prachin rajvansh ,ancient dynasties of jharkhand
छोटानागपुर का नागवंश – प्रारंभिक प्रदेश राजवंशों में छोटानागपुर का नागवंश सबसे प्रसिद्ध रहा है । दर्पनाथशाह द्वारा अंग्रेज गवर्नर जनरल को समर्पित कुर्सिनामा के अनुसार नाग वंश का प्रथम संस्थापक राजा फनीमुकुट राय था, जो पुंडरीक नाग एवं वाराणसी की ब्राह्मण कन्या पार्वती पति का पुत्र था। मद्रा मुंडा एवं अन्य मुंडा नेताओं ने उसे राजा चुना। इसके राज्य काल में 66 परगना थे।
फनीमुकुट राय के समय छोटानागपुर की जनता जनजाति थी। फनीमुकुट राय के राजा बनने के बाद ही यहां पर ब्राह्मण ,राजपूत तथा अन्य हिंदू जातियों की संख्या में वृद्धि हुई। गैर जनजातियों लोगों में सर्वप्रथम वाराणसी के ब्राह्मण है क्योंकि उनका फनीमुकुट राय से रक्त का संबंध था। फनीमुकुट राय का विवाह पंचेत राज्य की गोवंशी राजपूत घराने में हुआ था, पंचेत राज्य नागवंशी राज्य मैं अवस्थित था। उसने पंचेत के राजा की मदद से ‘क्योंझर’ के शासक को पराजित किया था। क्योंझर का राज्य नागवंशी राज्य के दक्षिण में स्थित था। फनीमुकुट राय ने अपनी राजधानी सुतियांबे में एक सूर्यमंदिर का निर्माण करवाया था। फनीमुकुट राय ने बहुत सी गैर जनजातियों को अपने यहां बुलाकर बसाया।
फनीमुकुट राय के बाद प्रताप राय एक महत्वपूर्ण नागवंशी राजा हुआ। वह नागवंशीयों की राजधानी को सुतियांबे से हटाकर स्वर्णरेखा नदी के तट पर चुटियां ले आया। उसके शासनकाल में वाराणसी से अनेकों लोगों को यहां लाकर बसाया गया । सरगुजा के राजा के साथ नागवंशी राजा भीमकर्ण का युद्ध हुआ था। उस समय सरगुजा पर रक्सेलों शासन था। इस घटना के बाद भीम कर्ण ने अपनी राजधानी चुटिया से खोखरा में हस्तांतरित कर ली ,क्योंकि सुरक्षा की दृष्टि से चुटिया सुरक्षित नहीं था । भीमकर्ण ने भीमसागर का निर्माण भी करवाया । वह साहसी शासक था उसने रक्सेलों को पराजित कर नागवंशी राज्य की सीमा को गहढ़वाल राज्य की सीमा तक फैलाया।
रामगढ़ राज्य – रामगढ़ राज्य नागवंशी राज्य खोखरा के उत्तर पूर्व में था। रामगढ़ राज्य की स्थापना संभव था 1367 ई॰ मैं बाघदेव सिंह ने की थी। अपने बड़े भाई सिंहदेव के साथ बाघदेव सिंह नागवंशी राजा रेनूकर्ण(1332- 1360 ई॰ ) तेल करना(1383-1367ई॰ ) के दरबार में उच्च पद पर आसीन थे। बाद में नागवंशी राजा से अलग होकर यह कर्णपुरा आ गए। तत्कालीन स्थानीय राजा को हराकर कर्णपुरा पर अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे दोनों भाइयों ने 21 परगना ऊपर अधिकार स्थापित कर लिया बाघदेव सिंह ने अपनी राजधानी सीसिया में स्थापित की । बाद में कुछ समय बाद उन्होंने कर्णपुरा को राजधानी में बदलकर सबसे पहले उरदा, फिर बादम अंत में रामगढ़ अधिकार किया।
खड़कडीहा राज्य – रामगढ़ राज्य के उत्तर पूर्व में खड़कडीहा राज्य अवस्थित था । इस राज्य की स्थापना 15वीं शताब्दी में हुई थी। संस्थापक ‘हैसराज देव’ नामक दक्षिणी भारतीय व्यक्ति था। शिवदास कर्ण (1367-1383 ई॰ ) एवं उदयकर्ण (1383 -1433 ई॰ ) इसके समकालीन थे। हैसराज के पूर्वज विजयनगर साम्राज्य से जुड़े थे। मुलतः बन्दावत जाति के शासक को परास्त किया एवं हजारीबाग के बीच 90 किलोमीटर लंबे क्षेत्र को अपने अधिकार में कर लिया । इस वंश का वैवाहिक संबंध अधिकतर उत्तर बिहार के ब्राह्मणों के साथ हुआ था।
पलामू का रक्सेल राज्य – पलामू के रक्सेल राज्य के शासकों का आधिपत्य पलामू एवं सरगुजा पर स्थापित था। रक्सेल राज्य ‘ खोखरा राज्य ‘के उत्तर पश्चिम में स्थित था। रक्सेलों का मूल स्थल राजपूताना था रक्सेल अपने आप को राजपूत कहते थे नागवंशीयों की तरह इनका शासन काल भी दीर्घकाल तक बना रहा।रक्सेलों ने पलामू की खरवार जनजातियों पर अपना प्रभाव स्थापित करने के उपरांत सरगुजा में भी अधिकार कर लिया। 11 वीं शताब्दी मैं लक्ष्मीकर्ण अत्यंत प्रतापी राजा हुआ। वह नागवंशी राजा गंधर्व राय का समकालीन था। सर्वोच्च था के लिए नागवंशी राजा भीमकर्ण (1098-1132 ई॰ ) पर रक्सेलों ने आक्रमण क्या था परंतु वे पराजित हुए। जिससे नागवंशी यों की प्रधानता इस क्षेत्र में बनी रहे। रक्सेलों ने देवगन एवं कुण्डेलवा में किले बनवाए। चेरो की आगमन तक रक्सेलों का हीं पलामू पर अधिकार था । उल्लेखनीय है कि ‘पलामू’ में प्रवेश करने के पूर्व ही रक्सेल दो दलों में विभक्त हो गए थे ।प्रथम दल हरिहरगंज तथा महाराजगंज होता हुआ देवगन में आकर बसा था और दूसरा दल चावरापाकी होते हुए कुण्डेलवा में जाकर बस गया था।
पलामू का चेरो वंश – चिरो वंश की स्थापना राजा भागवत राय ने रक्सेलों को पराजित करके की थी। चौसा की लड़ाई के पहले(1539 ई॰) शेर खाँ ने अपने सेनापति खवास खाँ को चेरो के विरुद्ध एक अभियान के लिए भेजा था संभवत यह अभियान महारथ शेरों के विरुद्ध था। रोहतासगढ़ पर शेर खान का अधिकार 1538 ई ॰ में हुआ था। लेकिन जब कभी भी शेरखान किसी अन्य कार्यों में उलझता तो पलामू के चेरों उसके लिए कठिनाइयां पैदा करते थे। बंगाल के आने जाने वाले शाही लश्कर को भी लूट लिया जाता था। अतः इन घटनाओं को रोकने के लिए खवास खाँ को भेजा गया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि महारथ चेरों पर आक्रमण करवाने का शेरशाह का उद्देश्य अपनी अद्भुत लक्षणों के लिए प्रसिद्ध एक सफेद हाथी था, जिसे महारत चेरों ने शेरशाह को देने से इंकार कर दिया था दरिया खाँ और खवास खाँ ने चेरो राज्य को घेर लिया और महारथ चेरों को पराजित करने के साथ सफेद हाथी सहित अनेकों बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त की । शेरशाह की रोहतासगढ़ विजय और पलामू विजय संभवत समसामयिक घटनाएं थी।
पंचेत राज्य – प्राचीन काल के अंत तक मानभूम क्षेत्र में मान राजाओं की शक्ति का ह्रास होने लगा। पाटकुड़ी, नवागढ़ ,झरिया तथा बुड के़ प्रमुख अपने आपको राजा कहाने लगे थे। यह सभी रामगढ़ राज्य को अपना ‘कर’ चुकाते थे। मानभूम राज्यों में सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य पंचेत राज्य था। जनश्रुति के अनुसार इसकी स्थापना जगन्नाथपुर के राजा एवं रानी के तीर्थ यात्रा के क्रम में जंगल में पैदा हुए पुत्र ने की थी। बड़ा होने पर यह पहले मांझी बना फिर परगना चौरासी का राजा बना । इसी राजा ने आगे चलकर पंचेतगढ़ का निर्माण किया है । राजा को जात राजा कहा जाने लगा । राजा ने कपिल गाय को राज्यचिन्ह के रूप में स्वीकार किया ।पंचायत गढ़ का पुराना नाम ‘पंचकोट’ है । ‘पंचेत राज्य’ नागवंशी राज्य के पूर्व में था।
सिंहभूम के सिंह राजवंश – डब्लू. डब्लू . हंटर ने सिंहभूम पोरहाट के सिंह राजाओं की भूमि कहां है। इस वंश की वंशावली के अनुसार सिंहभूम में ये लोग ‘हो’ जनजातियों पहले आकर बस चुके थे। सिंह राजवंश के पारिवारिक ‘इतिहास लेखन प्रभा’ के अनुसार सिंह लोग सिंहभूम के भुईयों एवं सरकों के संपर्क में संवत 750 ई॰ अर्थात 693 ई॰ मैं आए। उनका आठवीं शताब्दी के अंत तक क्षेत्र पर अधिकार हो गया था। वे पश्चिमी भारत से आए हुए राठौड़ राजपूत थे। उन्होंने ‘पोरहार सिंह राज्य’ की स्थापना की। इनकी पहली शाखा के संस्थापक काशीनाथ सिंह इस राजवंश के ऊपर भी नागवंशीयों का प्रभाव था। सिंहभूम के सिंह राजाओं की दूसरी शाखा का संस्थापक दर्पनारायण सिंह था इसका शासन 1205 ई॰में शुरू हुआ दर्पनारायण सिंह के बाद युधिष्ठिर शासक बना । इसके बाद उसका पुत्र काशीराम सिंह राजा बना। इसके शासनकाल में ‘पोरहाट’ के नाम से नई राजधानी स्थापित हुई। काशीराम सिंह का उत्तराधिकारी अच्युत सिंह था। इस वंश का पांचवा शासक त्रिलोचन सिंह और उसके बाद अर्जुन सिंह गद्दी पर बैठा ।इस वंश का 13वाँ शासक जगन्नाथ द्वितीय था जो कट्टर विचार वाला था।