नागपुरी संस्थान
नागपुरी संस्थान पिठोरिया में स्थापित है। इस संस्थान ने नागपुरी भाषा के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
नागपुरी संस्थान पिठोरिया में स्थापित है। इस संस्थान ने नागपुरी भाषा के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
नागपुरी भाषा में हिन्दी की तरह हीं एक शब्द के कई रूपों का प्रयोग किया जाता हैं ।उसे नागपुरी भाषा में पर्यायवाची शब्द कहते हैं ।
शब्द विलोम शब्द शब्द विलोम शब्द
ढाँगा ढ़ेपचा लम्बा नाटा
ढाँगी ढ़ेपची लम्बी नाटी
थुल-थुल लिटिर-पिटिर मोटा दुबला-पतला
गठन = 15 नवंबर, 2000 राजधानी = राँची जनसंख्या = 3,29,88,134 क्षेत्रफल = 79,710 वर्ग किमी. कुल ज़िले = 24 स्थान उच्च न्यायालय = राँची राजकीय पशु : हाथी राजकीय पुष्प : पलाश राजकीय पक्षी : कोयल राजकीय वृक्ष : साल संथाल जाति की प्रमुख लोककला : जादोपटिया जनजातीय पर्व : सरहुल सामान्य जानकारी झारखंड … Read more
जो शब्दांश शब्दों के बाद लगकर उनके अर्थ में विशेषता या परिवर्तन ला देते हैं या उसके अर्थ को बदल देते है ,प्रत्यय कहलाते हैं।
हिन्दी भासा जइसन खोरठा में अरथ वाला गुइल -गाहाइर जेके कोनों अरथ निकले ओकरा सबद कहल जा हे।
होड़ो जगर मुंडिं देवनागरी लिपि रे आद् होड़ो जगर आते हिनदी रे उलथा इदि अकना ।हिनदी पनढ़वको ,ओकोए होड़ो जगर काको इतुनवा आद् होड़ो होनकोएओ खलते पढ़व अर बुजव को दड़िअः ।
रेशम की सर्वप्रथम खोज चीन ने किया था ।भारत दुनिया में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
अर्थशास्त्र के संरक्षक इतिहासकार और रामशास्त्री के अनुसार झारखंड क्षेत्र चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में शामिल था। परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र निवास करने वाली आटवीं जातियों पर अशोक का नियंत्रण स्थापित था। अशोक के 13वें शिलालेख में आटवीं के नाम का उल्लेख हुआ है।
झारखण्ड में बौद्ध धर्म का इतिहास बौद्ध धर्म का झारखंड क्षेत्र से गहरा संबंध था| डॉ. विरोत्तम ने अपनी रचना ” झारखंड: इतिहास एवं संस्कृति ” मैं गौतम बुध की जन्मभूमि झारखंड को बताया है| जिसे तथ्य नकारते हैं| इसका प्रमाण पलामू के मूर्तियां गांव से प्राप्त सिंह मस्तक है| यह अवशेष वर्तमान में रांची विश्वविद्यालय … Read more
झारखंड क्षेत्र से उत्तर मौर्यकालीन शासकों इंडोग्रीक (indo-greek ),सुफियान ,कुषाण तथा सिंहभूम में रोमन सम्राट के सिक्के हुए हैं ।
छोटानागपुर का नागवंश – प्रारंभिक प्रदेश राजवंशों में छोटानागपुर का नागवंश सबसे प्रसिद्ध रहा है ।
प्राचीन काल में छोटानागपुर एक पूर्ण वन क्षेत्र था। सघन वनों एवं पहाड़ियों से परिपूर्ण यह क्षेत्र कैमूर और विंध्य पहाड़ियों से घिरा था। असुर, खड़िया, बिरहोर यहां की प्राचीन जनजातियां हैं।
अनेक स्रोत यह बताते हैं कि झारखंड के अधिकांश जनजातियों वैदिक आर्य लोग जो ऋग्वैदिक युग में उत्तर पश्चिम भारत में तथा उत्तर-वैदिक युग में उत्तर भारत में अपना प्रसार कर रहे थे उनके विरोधी थी।
प्राचीन काल में मानभून जैन सभ्यता और संस्कृति का केंद्र था। झारखंड की पार्श्वनाथ पहाड़ी, कसाई और दामोदर नदी घाटी , तुईसामा , देवल , पाकबीरा , गोलमारा , पवनपुर ,पालमा , कतरास , गोडाम तथा पलामू जिले के हनुमाड गांव स्थित प्रमुख जैन स्थलों से जैन धर्म के प्रसार का साथ मिलता है।
1. कपार बथेक – तकलीफ होवेक
2. काठ मारेक – हतप्रभ होवेक
3. कपार फाटेक – नसीब खराब होवेक
4. करजा ठंढा होवेक – बदला पूरा होवेक
झारखंड का इतिहास एवं संस्कृति के प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक गौरवशाली परंपरा रही है। झारखंड का इतिहास एवं संस्कृति के निर्माण में जनजाति समाज का अमूल्य योगदान रहा है।
झारखंड में जनजातीय समूह की 2011 ई जनगणना के अनुसार 8645 042 राज्य की कुल जनसंख्या का 26.2% है। ग्रुप से से ज्यादा जनजातियां का निवास करती है, जिनमें 8 आदिम जनजाति एवं 24 अनुसूचित जनजाति के रूप में चिन्हित है, आदिम जनजाति की कुल जनसंख्या 29,2359 है जो राज की कुल जनसंख्या का 2.4 प्रतिशत है ।
परिभासा
नागपुरी लोक भाषा हेके सेके इकर में लिंग निर्नय कर बगरा समस्या नखे । लिंग कर माने होवेला जेकर से पुरुष (पुरुख) चाहे स्त्री (जनी) जात के पहचान होवे ।
परिभासा – सबद मन कर पाछे जोन अछर इया अछर समूह लगाल जायला उके प्रत्यय कहल जायला |
प्रत्यय दुइ सबद कर मेल प्रति+अय से बईन हे प्रति कर माने साथ में पाछे, बादे आउर ‘अय’ कर माने होवेला चालेकवाला । कहेक माने कोनो सबद कर पाछे लाइग के चालेक वाला अविकारी सबद ।