विभिन्न वैदिक साहित्यिक स्रोतों में झारखंड की जनजातियों तथा क्षेत्रों का वर्णन अनेक संदर्भों में आया है । अनेक स्रोत यह बताते हैं कि झारखंड के अधिकांश जनजातियों वैदिक आर्य लोग जो ऋग्वैदिक युग में उत्तर पश्चिम भारत में तथा उत्तर-वैदिक युग में उत्तर भारत में अपना प्रसार कर रहे थे उनके विरोधी थी।
अमरनाथ दास की पुस्तक अमरकोश में चाईबासा शहर के लिए श्रीवास शहर नाम उल्लेख किया गया है। अमरनाथ दास के अनुसार यहां का शासक नरवाहन था जिसका पुत्र ललिततांग का विवाह चंपा की राजकुमारी के साथ हुआ था।
ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार वैदिक काल में चेरो, सबर आदि जनजातियां मगर क्षेत्र में निवास करती थी। लेकिन जब उत्तर वैदिक काल में कीकट (मगध) क्षेत्र तक का विस्तार हुआ तब यह लोग छोटा नागपुर की ओर प्रस्थान कर गया।
जयचंद विद्यालंकर ने ‘ बिहार :एक ऐतिहासिक दिग्दर्शन ‘ नामक पुस्तक में इस बात का वर्णन किया है कि आर्यों ने अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिए त्रिशंकु के पुत्र हरिश्चंद्र ने सोन नदी के किनारे एक किले का निर्माण करवाया था, जिसका नाम उसने अपने पुत्र रोहिताश के नाम पर रोहिताश्वगढ़ कर रखा था।