Oyster mushroom ki kheti kaise kare, Oyster mushroom kya h, Oyster mushroom in hindi,ऑयस्टर मशरूम,ढ़ींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती
परिचय (Introduction)
प्राय: वर्षा ऋतु में छतरी नुमा आकार के विभिन्न प्रकार एवं रंगों के पौधों जैसी संरचनायें या आकृतियां अक्सर खेतों में ,जंगलों में तथा घरों के आस पास दिखाई देती है। जिन्हें हम मसरूम या खूम्ब करते हैं।
यह मशरूम एक प्रकार के फफूंद है इसका उपयोग आदिकाल से हमारे पूर्वज खाने तथा रोगो की रोकथाम के लिए उपयोग करते रहे हैं। प्रकृति में लगभग 14 से 15 हजार तरह के मशरूम पाए जाते हैं सभी प्रकार के मशरूम खाने योग्य नहीं होते हैं क्योंकि कुछ मशरूम जहरीले होते हैं अत : बिना जानकारी जंगली मशरूम नहीं खाना चाहिए।
इन्हीं मशरूम में ढिंगरी प्रजाति के मशरूम पुरानी लकड़ी सुखे पेड़ तथा पेड़ की बाहरी खाल पर बारिश के बाद देखे जा सकते हैं।इनकी पहचान करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है क्योंकि इनका डंठल बहुत छोटा होता है तथा छतरी के एक किनारे से जुड़ा होता है। हमारे देश में मुख्यता: चार प्रकार की मशरूम की खेती की जाती है।
1. ढींगरी मशरूम
2. बटन मशरूम
3. दूध छत्ता या मिल्की मशरूम
4. धान या पुआल मशरूम
हमारे देश की जलवायु भिन्न भिन्न प्रकार की है तथा ऋतुओं के अनुसार पता भरण में तथा नमी रहती है जिनको ध्यान में रखकर हम अलग-अलग समय पर विभिन्न प्रकार के मशरूमो की की खेती कर सकते हैं। वैसे हमारे देश की जलवायु ढिंगरी मशरूम के लिए बहुत ही अनुकूल है तथा वर्ष भर ढिंगरी की खेती की जा सकती है। यह शिटाके मशरूम के बाद दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली मशरूम है। इस मशरूम में प्रोटीन की बहुतायत होती है तथा कई तरह के औषधीय तत्व भी पाए जाते हैं। ढिंगरी मशरूम अन्य मशरूमों की तरह एक शाकाहारी पौष्टिक भोज्य है तथा आने वाले समय में इसका निरंतर बढ़ने की संभावना है भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां पर अधिकतर लोग शाकाहारी है।अतः यहां कृषि फसलों का उत्पादन बहुतायात में होता है। इन कृषि फसलों के अवशेष जैसे पुआल, भूसा, पत्ते जो कि , गेहूं चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, गन्ना तथा कई तरह की दालों तथा सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी फसलों से प्राप्त किए जाते हैं।
इनमें से कुछ का उपयोग पशुओं को चारे के रूप में खिलाने के जाने के लिए किया जाता है। लेकिन कई फसलों के अवशिष्ट का कोई उपयोग नहीं है तथा किसान भाई इन्हें खेतों में ही जला देते हैं। इसका कुप्रभाव हमारे जीवन में तथा वातावरण में आए दिन देखा जा सकता है। ढिंगरी मशरूम की खेती एक साधन है इससे इन कृषि अवशिष्टों को प्रयोग कर किसान भाई अपने परिवार को पौष्टिक दे सकते हैं कथा अपनी ढंग से दोहन कर अपने खेतों की उर्वरता को बढ़ा सकते हैं । आज ढिंगरी मशरूम की खेती हमारे देश के कुछ राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र , तमिलनाडु, केरल उड़ीसा पश्चिम बंगाल तथा उत्तर पूर्वी राज्यों मे बहुतायत से हो रही है। ढिंगरी मशरूमकी कुछ विशेषताएं हैं जिसकी वजह से इसकी खेती भारत में ही नहीं अपितु विश्वभर में भी लोकप्रिय हो रही ।
ढींगरी को किसी भी प्रकार के कृषि अवशिष्टों पर आसानी से उगाया जा सकता है।इसका फसल चक्र 40-60 दिन का होता और इसे आसानी से सुखाया जाता है।
ढींगरी मसरूममें भी अन्य मशरूमों की तरह सभी प्रकार के विटामिन ,लवण,तथा औषधीय तत्व मौजूद होतें हैंजैसे कि कि लोवास्टेटिन जो कि मनुष्य के शरीर में कालेस्ट्रोल या ब्लेड प्रेशर कमकरने की क्षमता रखता है।तथा ढींगरी को वर्षभर सर्दी या गर्मियों मे सही प्रजाति का चुनाव करउगाया जाता है,आज हमारे देश में इसकी व्यावसायिक खेती ,पश्चिमी ,दक्षिणी तथा उत्तर पूव राज्यो मे हो रही है।हमारे देश की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है।आने वाले समय में हमारे देश मे भी इसके उत्पादन की बहुत सम्भावनाए हैं।
1.पौशाधार तैयार करना:– ढींगरी का उत्पादन साधारणतः किसी किसी भी प्रकार लिखित फसल के का प्रयोग कर किया जा सकता है इसके लिए जरूरी है कि भूसा या पुआल पुराना तथा सड़ा गला नहीं होना चाहिए। जिन पौधों के अपशिष्ट सख्त तथा लंबे होते हैं उन्हें मशीन द्वारा दो से 3 सेंटीमीटर साइज का काट लिया जाता है। किसी अवशेषों में कई तरह के हानिकारक सूक्ष्मजीवी फफूंद , बैक्टीरिया तथा अन्य जीवाणु पाए जाते हैं। अत: सर्वप्रथम कृषि अवशेषों को जीवाणु रहित किया जाता है जिसके लिए निम्नलिखित कोई भी विधि द्वारा कृषि अवशेषों को उपचारित किया जा सकता है।
(क) गर्म पानी उपचार विधि:– इस विधि में कृषि अवशेषों को छिद्र दार जूट के थैले या बोरे में भरकर गर्म पानी में (60-65 डिग्री सेल्सियस) लगभग 30 से 45 मिनट उपचारित किया जाता है। उपचारित भूसे को ठंडा करने के बीज में मिलाया जाता है ।
(ख) पास्चुराईजेशन:– या विधि उन मशरूम उत्पादकों के लिए उपयुक्त है जो बटन मशरूम की खाद पाश्चराइजेशन टनल में बनाते हैं। इस विधि में भूसे को गीला कर लगभग जोड़ी आयत कार ढेर बना ली जाती है। इसके लिए कम से कम 3:00 से 4 क्विंटल भूसे की जरूरत होती है । ढेरी को 2 दिन बाद तोड़कर फिर से नई ढेर बना दी जाती है। इस प्रकार से 4 दिन बाद उसे का तापमान 55 से 65 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा तथा अब भूसे का परसूएसन टनल से भर दिया जाता। टनल का तापमान भी क ब्लोअर द्वारा समान करने के बाद बॉयलर से भाप देकर भूसे का तापमान 60 से 65 डिग्री के बीच लगभग 4 घंटे रखने के बाद भूसा जब ठंडा हो जाए ताबीज मिला दिया जाता है।
2.ढीगरी का बीज – हमेशा ताजा प्रयोग करना चाहिए जो 30 दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। भूसा तैयार करने से पहले हे बीज खरीद लेना चाहिए तथा 1 क्विंटल सूखे भूसे के लिए 10 किलो बीच की जरूरत होती है । कई बार किसान भाई कम बीज डालते हैं जिससे माइसीलीयम पर ज्यादा समय लग जाता है। गर्मियों के मौसम में प्लूरोटस साजोर काजू प्लू , फ्लेबीलेटस ,प्लू सेपीडस ,प्लू साईट्रीनोपीलीएटस को उगाना चाहिए।सर्दियो मे जब वातावरण का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे हो तो प्लू फ्लोरिडा प्लू आस्ट्रेटस का चुनाव करना चाहिए। बिजाई करने के लिए 2 दिन पहले कमरे को फॉर्मलीन से उपचारित कर लेना चाहिए। प्रति 4 किलो गीले भूसे में लगभग 100 ग्राम बीज अच्छी तरह से मिलाकर पॉलिथीन की थैलियों (40-45 से. ल*30-35 से.चौ.) में भर देना चाहिए। पॉलिथीन को मोड़ कर बंद कर देना चाहिए या अखबार उसे को खबर कर देना चाहिए तो उसमें लगभग 5 मिलीमीटर के 10:00 से 12:06 चारों तरफ तथा पेंदें में कर देना चाहिए। जिससे बैक का तापमान का लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ नहीं जाए।
3.फसल प्रबंधन:– बिजाई करने के पश्चात थैलियों को एक उत्पादन बीज फैलने के लिए रख दिया जाता है, बैगो को हफ्ते में एक बार अवश्य देख लेना चाहिए की बीज फैल रहा है या नहीं । अगर किसी बैग में हरा, काला, या नीले रंग की फफूंद या मोल्ड दिखाई दे तो तो ऐसे बैग को उत्पादन से बाहर निकालकर दूर फेंक देना चाहिए। बीज फैलते समय समय पानी, हवा या प्रकाश की जरूरत नहीं होती है। अगर बैक तथा कमरे का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने लगे तो कमरे की दीवारों तथा छत पर पानी का छिड़काव 3 बार करें या एयर कूलर लगा चला दे। इसका ध्यान रखना चाहिए कि बैगों पर पानी जमा ना हो। लगभग 15 से 25 दिनों में मशरूम का कवक जाल सारे भूसे पर फैल जाएगा अब बैग सफेद नजर आने लगेगा। इस स्थिति में पॉलिथीन को नहीं हटा लेना चाहिए। गर्मियों के दिनों में अप्रैल और जून पॉलिथीन को पूरा नहीं हटाना चाहिए क्योंकि बागों में नमी की कमी हो सकती है। आता बैग में लगभग 2 सेंटीमीटर के 8:00 से 10:00 छेद ब्लड द्वारा कर दिए जाते हैं। जिससे की पहली फसल बिना पानी के छिड़काव से प्राप्त जाएगी तथा दूसरी फसल में पॉलिथीन को मोड़ दिया जाता है। जिससे फसल ऊपर से भी प्राप्त की जा सके। पॉलिथीन हटाने के बाद फलन के लिए कमरे में तथा प्रतिदिन में दो से तीन बार पानी छिड़काव करना। कमरे में लगभग 6:00 से 8:00 घंटे तक प्रकाश देना चाहिए। जिसके लिए खिड़की पर सीसा लगा होना चाहिए या टयूबलाईट का प्रबंधन होना चाहिए,कमरों । उत्पादन कमरों प्रतिदिन दो से तीन बार खिड़की खुली रखनी चाहिए या एग्जास्ट पंखों को चलाना चाहिए।जिससे कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा 800पी.पी.एम से अधिक न हो। ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा होने से ढीगरी का डंठल बड़ा हो जाएगा तथा छतरी छोटी रह जाती है ।बैगों को खोलने के बाद लगभग ए सप्ताह में मशरूम की छोटी छोटी कलिकाएँ बनने लग जायेगी जो र से पाँच दिनों में पूर्णआकार ले लेती है।
4.मशरूम की ड़ाई करना:– जब ढींगरी पूरी तरह से परिपक्व हो जाए तब इनकी तुड़ाई की जानी चाहिए। ढींगरी की छतरी के बाहरी किनारे और ऊपर की तरफ मुंडने लगे तो ढींगरी स्क्रीन की छतरी बाहरी किनारे ऊपर की तरफ मुंडने लगे तो ढींगरी तोड़ने लायक हो गई है, तुड़ाई हमेशा पानी के छिड़काव से पहले करनी चाहिए, मशरूम तोड़ने के बाद डंठल के साथ लगे भूसे को चाकू से काट कर अलग कर देना चाहिए। पहली फसल के 8 से 10 दिन बाद दूसरी फसल आएगी, पहली फसल कुल उत्पादन का आधी या उससे ज्यादा होती है। इस तरह 3 फसलों तक उत्पादन ज्यादा होता है। इसके बाद बैगो को किसी गहरे खड्डे में डाल देना चाहिए जिससे उसकी खाद बन जाएगी इनका खेतों में खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। जितनी व्यवसाय प्रजातियां है उनमें से एक किलो सूखे भूसे से 7 से 800 ग्राम पैदावार मिलती है।
5.सावधानियां:–ढींगरी के फलन में अत्यधिक मात्रा छोटे बिजानू या सपोर्ट बनते हैं जीने सुबह उत्पादन कक्ष में धुएं की तरह जा सकता है। इन बिजाणुओं से अक्सर करने वाले लोगों को एलर्जी हो सकती है। अतः जब भी ढींगरी तोड़ने उत्पादन कक्ष में प्रातः जाए तो खिड़की दरवाजे इत्या दो घंटे के लिए खोल देना चाहिए तथा नाक पर मास्क लगाना चाहिए तब कमरें में जाना चाहिए अगर उत्पादन कक्षा में एक तरफ दीवार पर अंदर हवा फेकने वाला पंखा लगा दिया जाए तो तथा के सामने वाली दीवार पर फर्स लगभग 20-30 सेंटीमीटर ऊंचाई पर एक पंखा लगा दिया जाए तथा फसल की चौड़ाई के लगभग 2 घंटे पहले दोनों पंखों को चला देना चाहिए 99%ढींगरी के स्पोस या बीजाणु बाहर निकल जायेंगें।
5.भंडारण उपयोग:– ढींगरी तोड़ने के बाद उसे तुरंत पॉलिथीन में बंद नहीं करना चाहिए अपितु लड़कों के कपड़े पड़ फैलाकर छोड़ देना चाहिए इससे कि उसने मौजूद नमी उड़ जाएगी। ताजा ताजा
ढींगरी को एक छिद्रदार पॉलिथीन में भरकर रेफ्रिजरेटर में 2 से 4 दिन तक रखा जा सकता है।ढींगरी को ओवन धूप मे सुखाया जा सकता है,ढींगरी के विभिन प्रकार के व्यंजन जैसे ढींगरी आमलेट या बिरयानी इत्यादि बनाई जाती है।सूखी हुई ढींगरी का प्रयोग भी सब्जी के लिए किया सकता है।ताजा ढींगरीका अचार था सूप भी बहुत स्वादिष्ट बनाया जा सकता है।
6.आमदनी:–ढींगरी का व्यवसाय एक लाभकारी व्यवसाय है जिसमें लागत बहुत कम लग है ।इसके लिए उत्पादन कक्ष कम लागत पर बनाए जातें हैं,तथा फसल चक्र भी 40-50 दिन का होता है ।एक किलोग्राम ढींगरी का लागत मूल्य लगभग 25-30 रू तक होती है तथा इसे सफेद बटन कीमत पर बाजार में आसानी बेचा जा सकता है।