झारखंड में जैन धर्म का इतिहास
झारखंड में जैन धर्म का इतिहास ,jharkhand me Jain dharma ka itihas , Jain religion in jharkhand
प्राचीन काल में मानभून जैन सभ्यता और संस्कृति का केंद्र था। झारखंड की पार्श्वनाथ पहाड़ी, कसाई और दामोदर नदी घाटी , तुईसामा , देवल , पाकबीरा , गोलमारा , पवनपुर ,पालमा , कतरास , गोडाम तथा पलामू जिले के हनुमाड गांव स्थित प्रमुख जैन स्थलों से जैन धर्म के प्रसार का साथ मिलता है। साहित्यिक स्रोतों मैं आचारंग सूत्र तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी झारखंड में जैन धर्म के प्रभाव का विवरण मिलता है। आचारंग सूत्र में भगवत महावीर भगवान महावीर के लाध क्षेत्र में भ्रमण करने का विवरण है। झारखंड के मानभूम तथा बांकुड़ा क्षेत्र ( पश्चिम बंगाल ) में लाध नाम के साथ जुड़ा हुआ है सुखलाध, लऊलाध , पोदलाध तथा बहुलाध प्रमुख स्थल है। आचारंग सूत्र के अनुसार इस लाध क्षेत्र के निवासियों ने महावीर के साथ उचित व्यवहार नहीं किया था जिनके लिए ‘ धृष्ठ जन ‘ का प्रयोग किया गया है|
जैन साहित्य के अनुसार जैन धर्म के 24 तीर्थंकर हुए हैं। जिनमें 20 तीर्थंकरों अर्थात जैन धर्म के सर्वोच्च गुरुओं को मोक्ष की प्राप्ति पारसनाथ की पहाड़ी (पार्श्वनाथ ) में हुई था । इनमें जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पारसनाथ का भी महाप्रयाण इसी पहाड़ी पर हुआ था । जिसके अनुसार इस पहाड़ी को पार्श्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है जो जैनियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। पारसनाथ की पहाड़ी जिसे सम्मेद शिखरजी भी कहते है , वह गिरिडीह जिले में स्थित है।
सम्मेद पर्वत अर्थात पारसनाथ की पहाड़ी को शाश्वत तीर्थ भी कहा जाता है । 20 तीर्थंकरों जिनका निर्माण पारसनाथ पर्वत पर हुआ था, मैं सर्वाधिक प्रसिद्ध पारसनाथ है, क्योंकि इनकी ऐतिहासिकता प्रमाणित है । सावन सप्तमी के दिन भगवान पार्श्वनाथ को मोक्ष की प्राप्ति होने के कारण इस दिन प्रतिवर्ष या यहां मेले का आयोजन किया जाता है यह स्थान मधुबन के नाम से भी जाना जाता है जोकि बहुत महत्वपूर्ण है।
पारसनाथ पहाड़ी के अतिरिक्त पकबीरा ,देवली ,गोलमारा ,पलमा आदि में अनेक जैन मंदिर एवं मूर्तियां स्थित है। बोडाम , बलरामपुर, कर्रा आदि स्थलों पर अनेक जैन मंदिरों का निर्माण करवाया गया था । इतिहासकार भी .बाल ने अपने पुस्तक “जंगल लाइव इन इंडिया ” में सिंहभूम क्षेत्र में आदि निवासियों के लिए ‘ सरक ‘ शब्द का प्रयोग किया है। सरक शब्द संभवताः जैन धर्म में गृहस्थ जैनियों के लिए प्रयोग किए जाने वाला ‘श्रावक ‘ शब्द से बना है।