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झारखण्ड में बौद्ध धर्म का इतिहास | Budha Dharm Ka Itihas | Budha Religion in Jharkhand

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झारखण्ड में बौद्ध धर्म का इतिहास : –

बौद्ध धर्म का झारखंड क्षेत्र से गहरा संबंध था|  डॉ. विरोत्तम ने अपनी रचना ” झारखंड: इतिहास एवं संस्कृति ” मैं गौतम बुध की जन्मभूमि झारखंड को बताया है| जिसे तथ्य नकारते हैं| इसका प्रमाण पलामू के मूर्तियां गांव से प्राप्त सिंह मस्तक है| यह अवशेष वर्तमान में रांची विश्वविद्यालय संग्रहालय में सुरक्षित है तथा सांची में स्थित बौद्ध स्तूप पर उत्कीर्ण सिंह मस्तक से काफी समानता रखता है| धनबाद जिले में करूआ ग्राम का बौद्ध स्तूप ,स्वर्णरेखा नदी के तट पर डालमी एवं कसाई नदी के तट पर बुद्धपुर में बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक अवशेष पाए गए हैं| बेँगलर के अनुसार के अवशेष 10 वीं सदी के हैं|

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Gautam buddha

                                                                     झारखंड और पश्चिम बंगाल के सीमा पर लाथोन डोंगरी पहाड़ी में बेँगलर ने चैत्य तथा पाकबीरा मैं आर.सी .बोकन ने बौद्ध खंडार की खोज की है। चैत्य बौद्ध धर्म का पवित्र पूजा स्थल होता है । 1919 ई. में ए. शास्त्री ने बाग में काले चिकने पत्थर की बुद्ध मूर्ति की खोज की थी, जिसकी दोनों भुजाएं टूटी हुई हैं । इसी स्थल से एक अष्टभुजी देवी की प्रतिमा प्राप्त हुई है। प्रतिमा के ऊपर एक सिंह सवार है। यहां से एक लेख प्राप्त हुआ है जिस पर अर्थबंगला नागरी लीपी में लेख उत्कीर्ण है। यह लेख बंगाल के शासक विजयसेन के देवपाड़ा प्रशस्ति लेख से समानता रखता है|

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                                                                                  खूंटी जिले के बेलवादाग ग्राम से बौद्ध विहार का अवशेष   प्राप्त हुआ है। यहां से प्राप्त ईट सांची के स्तूप में प्रयुक्त ईट एवं मौर्यकालीन ईटों के समान है। गुमला जिले के कटुंगा गांव ,पूर्वी सिंहभूम के भूला ग्राम से बुद्ध की प्रतिमा तथा पूर्वी सिंहभूम के इचागढ़ से स्कूल की दीवार से महा श्री तारा की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है।।984 ई . से यह प्रतिमा रांची संग्रहालय में सुरक्षित है राजमहल क्षेत्र स्थित काकॅजोल से बुद्ध की मूर्तियों की खोज कनिंघम द्वारा की गई है चतरा जिले के इटखोरी में भद्रकाली मंदिर परिसर से बुध की 4 प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं ।यह प्रतिमा सातवीं सदी की हैं तथा विभिन्न मुद्राओं में है। यह मूर्तियां बालू पत्थर की हैं, जो हर्षवर्धन कालीन प्रतीत होती हैं। गौतम बुध बोधगया में ज्ञान प्राप्ति (बोधित्व) के 45 वर्षों तक जिन क्षेत्रों में ज्ञान का उपदेश देते रहे उनमें झारखंड क्षेत्र भी शामिल था ।

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                                                                                        कुषाण वंश के सर्वश्रेष्ठ शासक  कनिष्क के सिक्के रांची के आसपास के क्षेत्र में पाए हुए हैं। महायान बौद्ध धर्म को प्रश्रय देने वाले शासक  कनिष्क  ने लगभग संपूर्ण बिहार- झारखंड  क्षेत्र पर शासन स्थापित कर लिया था। कनिष्क ने इस क्षेत्र में नियुक्त अपने छात्रप वंशफर के सहयोग से यहां के स्थानीय निवासी पुलिदों को बौद्ध धर्म में शामिल किया था। इस तरह कनिष्क के समय तक झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म फल – फूल रहा था, जब गुप्त वंश के समय विशेषकर समुद्रगुप्त के काल में वैष्णव धर्म का उद्भव एवं प्रभाव इस क्षेत्र में पड़ने लगा तब बौद्ध धर्म का प्रभाव शिथिल होने लगा ।गुप्त वंश के पतन के बाद जब इस क्षेत्र पर कट्टर शैव शासक बंगाल के शशांक का शासन स्थापित हुआ तब उसने कई बौद्ध केंद्रों को नष्ट कर दिया।

                                                                              पुनः बौद्ध धर्म के संरक्षक शासकों हर्षवर्धन एवं पाल वंश के समय  झारखंड क्षेत्र पर बौद्ध धर्म के प्रभाव में वृद्धि हुई। पाल वंश के शासकों गोपाल ,धर्मपाल , देवपाल आदि ने बौद्ध धर्म की शाखा वज्रयान को अधिक प्रश्रय दिया, जिसका प्रभाव भी झारखंड पर पड़ा।

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