मुण्डारी व्याकरण की भाषा और अक्षर | होड़ो जगर मुंडि रेअः जगर ओड़ोः बनि
मुण्डारी व्याकरण की भाषा और अक्षर ,होड़ो जगर मुंडि रेअः जगर ओड़ोः बनि
होड़ो जगर मुंडिं देवनागरी लिपि रे आद् होड़ो जगर आते हिनदी रे उलथा इदि अकना ।हिनदी पनढ़वको ,ओकोए होड़ो जगर काको इतुनवा आद् होड़ो होनकोएओ खलते पढ़व अर बुजव को दड़िअः ।
(मुंण्डारी व्याकरण देवनागरी लिपि में तथा मुंडारी से हिन्दी में अनुवाद है। हिन्दी पाठक जो मुण्डारी भाषा भी आसानी से पढ़ सकते हैं,मुण्डारी भाषा भी आसानी से पढ़ समझ सकेगें ।)
मुण्डारी भाषा लिखने के नियम —
- होड़ो जगर रे हिनदी बनि ।
चिलका (जैसे) – ऋ ,ष,श,क्ष आद्,त्र का हिजुःतना ।(कुछ हिन्दी वणमाला जैसे :–ऋ,ष,श,क्ष,आद् ,त्र का मुण्डारी मे प्रयोग नहीं होता है ।)
2 – ने लेकागे होड़ो जगर ओनोल रे जोनोटोः बनि का ओलोताना मेनदो जोद्-चिना ओम के आते ओलोताना ।
चिलका (जैसे)- बिन्गा –बिनगा, मेन्दो-मेनदो , हेब्रे-हेनते । ( मुण्डारी लेखन में संयुक्ताक्षर नहीं लिखा जाता
है,लेकिन हलन्त का चिन्ह का प्रयोग होता है । जैसे –बिन्गा –बिनगा । )
3 –होड़ो जगर रे जति आद् सकम लेकाते उदम का बदलि इदितओःतना । (बचन के अनुसार क्रिया के रूप नहीं
बदलता है । ) चिलका
(जैसे):–
(क)- कोड़ा होन सेनोः तना। ( लड़का जा रहा है। )
(ख)- कुड़ि होन सेनोः तना । ( लड़की जा रही है। )
(ग)- होड़ोको सेनोः तना । ( लोग जा रहे है । )
(घ)-कुड़ि होन किङ सेनोः तना । ( दो लड़की जा रही हैं। )
(ङ)- कोड़ा होन किङ सेनोः तना । ( दो लड़के जा रहे हैं । )
चेतन रे ओलाकन बंकड़ां को रे “ कोड़ा ” आद् ‘ कुड़ि’ क्रमशः संडिं जति आद् एंगा जति तनअः। मेनदो उदम ‘ सेनोःतना ’ मेता लेकाते बदलिओःतना । ने लेकागे ‘ होड़ोको ’ ‘ कुड़ि होन किड़ ‘ तथा कोड़ा होन किड़’ । “ रे सकम लेकाते उदम का बदलियाकना (उपरोक्त वाक्यों में “कोड़ा तथा कुड़ि ” क्रमशः पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग है । लेकिन क्रिया का रूप “सेनोःतना दोनो ही वाक्यों में समान हैं। इसी प्रकार ‘ होड़ोको ’ , कुड़िहोन किड “ तथा कोड़ा होनकिङ में वचन के अनुसार क्रिया नहीं बदला है । ) “
(4)- संस्कृत जगर लेका होड़ो जगर रेओ सकम रेअः अपि हनाटिङ नमोःतना (संस्कृत के समान मुंडारी में भी वचन के तीन भेद होते हैं । ) :–
(क) – मिद् सकम (एक वचन )
(ख) – बर सकम (दिव्वचन )
(ग) – इसु सकम (बहुवचन )
चिलका (जैसे) :–
होड़ो मिद्सकम बरसकम इसुसकम
(पुरूष) (एकवचन) (दिव्वचन) (बहुवचन)
सिदानिः अइञ् अलिङ/अलङ अले/अबु
(उत्तम पुरूष) ( मैं ) ( हम दोनों ) ( हमलोग )
तलानिः अम अबेन/अबिन अपे
(मध्यम पुरूष) (तुम) (तुम दोनो ) ( तुम लोग )
एट,अःनि अएअः अकिन/अकिङ अको
(अन्य पुरूष) (वह) (वे दोनों) (वे लोग)
(5)होड़ो जगर रे मइन् ओम मेनते बर सकम रेःमुटन रे कजिओःतना ।(मुण्डारी में किसी व्यक्ति को आदर देने के लिए सम्बोधन में दिव्वचन का प्रयोग किया जाता है । )
चिलका (जैसे):– दुब् बेन । (आप बैठिए। ),
जोमे बेन। (आप खाइए। ),
गितिःबिन। (आप सोइए। )
(6) होड़ो जगर ओनोल रे दिंगाःए मुनु बनि गे पुरूअः जगर रे हिजुःतना जिलिङ मुनु वनि दो का। (मुण्डारी लेखन में हस्व स्वर का ही अधिक प्रयोग होता है दीर्घ स्वर का ही नहीं।)
चिलका (जैसे):– आब् –चेहरा धोना । ,
ईल –पंख
अब् – बाल
(7) होड़ो जगर ओनोल रे दिनिःसड़ा (:) रेअः ओनोल मुनु बनि टुङ टुनडु रे आद् मुनु बनि रेअः बनितोङ चिना
,बोजा बनि रेअः टुनडु रे जोटोगोःतना ।
चिलका (जैसे):– बकबः – बैर ,
अरअः – लाल ,
सबअः — सीठा ,
अइञअः — मेरा ,
अएअः – उसका ।
मुण्डारी भाषा के लेखन के विसर्ग (:) का प्रयोग स्वरान्त शब्द में तथा स्वर वर्ण की मात्रा लगी हुई व्यंजन वर्ण के अन्त में लगता है ।
जैसे :- पेड़ेः ताकत ,
केटेः –कड़ा ।
पेटेः –हाथ से लकड़ी आदि तोड़ना ,
पुडुः –दोना । )